नई दिल्ली। निजता का अधिकार (राइट टू प्राइवेसी) मामले में सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने गुरुवार को ऐतिहासिक फैसला दिया। पीठ ने कहा कि निजता का अधिकार लोगों का बुनियादी हक है। उसमें कोई दखल नहीं दे सकता है। संविधान पीठ में शामिल सभी नौ जजेज ने एक राय में कहा कि राइट टू प्राइवेसी जनता का बुनियादी हक है। कोर्ट के इस फैसले का बड़ा असर पड़ेगा। खासकर सरकारी योजनाओं में आधार स्कीम की अनिवार्यता पर असर होगा। आधार को अनिवार्य नहीं किया जा सकेगा, साथ ही कोई आधार लेने के लिए बाध्य नहीं कर सकेगा।
वहीं सरकार भी आधार स्कीम के दायरे को बढ़ा नहीं पाएगी। बैंक, गैस, इंकम टैक्स, एजुकेशन आदि सभी में आधार लिंग को अनिवार्य कर दिया गया, जिसके चलते लोगों की व्यक्तिगत सूचना सार्वजनिक होने के मामले बढ़ने लगे। सीजेआई जेएस खेहर की अध्यक्षता में गठित संविधान पीठ में जस्टिस जे. चेलेमेश्वर, जस्टिस एसए बोबडे, जस्टिस आर.के.अग्रवाल, जस्टिस आर.एफ.नरीमन, जस्टिस अभय मनोहर सप्रे, जस्टिस डीवाई चन्द्रचूड, जस्टिस संजय कृष्ण कौल, जस्टिस एस.अब्दुल नजीर है। निजता का अधिकार मामला तब था, जब केन्द्र सरकार ने सरकारी योजनाओं का फायदा लेने के लिए आधार स्कीम को इसमें जोड़ना अनिवार्य कर दिया। इसे कोर्ट में चैलेंज करते हुए इसे प्राइवेसी के खिलाफ बताया। कोर्ट ने सुनवाई के बाद कहा कि राइट टू प्राइवेसी लोगों का बुनियादी है। संविधान प्रदत्त अधिकार के आर्टिकल २१ से यह बुनियादी तौर पर जुड़ा है।