-भूपेश दीक्षित
वर्तमान में आत्महत्या पर रिपोर्टिंग के मामलों में भारतीय पत्रकारिता, भारतीय प्रेस परिषद् एवं विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा तय मानकों और दिशानिर्देशों पर खरी उतरती नज़र नहीं आती है। समाचारपत्रों में आत्महत्या की खबर को जिस प्रकार सनसनीखेज सुर्ख़ियों के माध्यम से प्रस्तुत किया जा रहा है, सुसाइड के तरीके और विधि पाठकों को विस्तृत में बतलाये जा रहे है, खबर में मृतक की फोटो, सोशल मीडिया लिंक, विडियो फुटेज और सुसाइड नोट का प्रकाशन जिस प्रकार किया जा रहा है उन्हें किसी भी हालात में मीडिया का जनता के प्रति उचित आचरण नहीं ठहराया जा सकता है। विशेषकर मीडिया द्वारा सुसाइड नोट में लिखी बातों अथवा सुसाइड नोट का प्रकाशन या प्रसारण करना। सुसाइड नोट का प्रकाशन न तो पत्रकारिकता के लिए स्थापित मान्यता प्राप्त मानकों के अनुरूप आचरण के अंतर्गत आता है और न ही किसी भी प्रकार से यह पाठकों के लिए मंगलकारी है। आजकल प्राय: यह देखने में आ रहा है कि लोगों द्वारा ब्रेकिंग न्यूज़ देने के चक्कर में अनजाने में ट्विटर, यूट्यूब, फेसबुक, इन्स्टाग्राम आदि पर मृत व्यक्ति के सुसाइड नोट साझा और रिट्वीट किए जाते है बिना यह जाने कि इसका कितना नकारात्मक व अमंगलकारी प्रभाव अन्य पाठक, दर्शक या श्रोता के जीवन और मानसिक स्वास्थ्य पर पड़ने वाला है।
सुसाइड नोट से सम्बंधित एक और प्रक्रिया पर हम सभी को ध्यान देने की सख्त आवश्यकता है कि घटनास्थल पर मौजूद पुलिस, मृतक के परिवारजनों या रिश्तेदारों द्वारा सुसाइड नोट में लिखी बातें, आत्महत्या की विधि अथवा किसी व्यक्ति का नाम अथवा सुसाइड नोट या उसकी कॉपी मीडिया के साथ साझा नहीं की जानी चाहिए। मृतक के परिवारजनों, रिश्तेदारों अथवा पुलिस द्वारा मीडिया को किसी भी प्रकार का बयान देने से भी बचना चाहिए। सुसाइड नोट के आधार पर मृतक के परिवारजनों या रिश्तेदारों द्वारा दर्ज एफआईआर की रिपोर्ट पुलिस द्वारा परिवार की सहमति के साथ मीडिया से साझा की जा सकती है ना कि सुसाइड नोट साझा किया जाना चाहिए। अनेक शोध में ऐसा प्रमाणित हो चूका है कि मीडिया द्वारा सुसाइड नोट प्रकाशित या प्रसारित किये जाने पर ऐसे व्यक्ति जिनके भावनात्मक, सामाजिक, आर्थिक, और राजनैतिक
हालात मृतक के हालात के जैसे है  तो ऐसे व्यक्ति खबर पढ़ने, सुनने और देखने के बाद व्यथित हो जाते है और आत्महत्या को अपनी समस्याओं के समाधान के रूप में लेते है एवं आत्महत्या का प्रयास करते है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार आत्महत्या से मरने वाले व्यक्ति की खबर पढ़कर, देखकर या सुनकर लगभग 60 अन्य लोग शोक से प्रभावित होते है और 20 लोग आत्महत्या का प्रयास करते है जिसमें स्वयं को मारने के लिए लगभग वही तरीका और विधि अपनाते है (कॉपीकैट सुसाइड) जो कि खबर में प्रकाशित या प्रसारित की गयी थी। यह प्रमाणिक आंकड़ा स्वयं परिभाषित कर रहा है कि आत्महत्या एक गंभीर जनस्वास्थ्य समस्या है जिसके दूरगामी सामाजिक, आर्थिक और भावनात्मक परिणाम है। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के अनुसार वर्ष 2021 में भारत में 1,64,033 लोगों ने अपना जीवन स्वयं जानबूझकर समाप्त कर लिया। मौत के यह भयावह आंकड़े साफ़ दर्शाते है कि देश में आत्महत्या एक गंभीर लोकस्वास्थ्य, सामाजिक और आर्थिक समस्या बन कर उभर चुकी है। आत्महत्या या आत्महत्या के प्रयासों को कम करने अथवा रोकने के लिए अब यह समय की मांग है कि आत्महत्या के कारण मरने वाले व्यक्ति के परिवारजनों, रिश्तेदारों या घटनास्थल पर मौजूद पुलिस द्वारा सुसाइड नोट मीडिया के साथ साझा न किया जाए, इसी प्रकार आमजन द्वारा सोशल मीडिया पर सुसाइड नोट प्रकाशित या प्रसारित न किया जाए और आमजन के समक्ष आदर्श आचरण तथा पहल प्रस्तुत करते हुए स्वयं मीडिया द्वारा भी आत्महत्या पर रिपोर्टिंग करते समय सुसाइड नोट का प्रकाशन या प्रसारण नहीं किया जावे। लोकमंगल को ध्यान में रखते हुए भारत सरकार के गृह मंत्रालय अथवा सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय द्वारा भी सुसाइड नोट के प्रकाशन या प्रसारण को रोकने हेतु पृथक से आदेश या दिशानिर्देश शीघ्र जारी करने चाहिए तभी भारत में आत्महत्या रोकथाम के सामूहिक प्रयासों को बल मिलेगा और इससे सभी का कल्याण होगा।

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