Accident Claim

– ठेकेदारों को समय पर भुगतान नहीं करने के चलते 27 करोड़ के लिए बेशकीमती सिंचाई भवन होगा नीलाम

जयपुर। राजस्थान सरकार के जलसंसाधन और सिंचाई विभाग के अफसरों की गलती का खामियाजा सरकार को भुगतना पड़ रहा है। नहर बनाने वाले ठेकेदार को समय पर भुगतान नहीं करने के चलते सरकार पर 27 करोड़ रुपए चढ़ गए। जब राशि नहीं मिली तो ठेकेदार फर्म कुर्की आदेश ले आई। अब इतनी बड़ी राशि देने के लिए सरकार को सी-स्कीम स्थित सिंचाई विभाग के भवन को नीलाम करना पड़ेगा। यह भूमि बेशकीमती है। सिंचाई विभाग जोधपुर जोन में इन्दिरा गांधी नहर परियोजना और पाली के जवाई बांध परियोजना में वर्ष 2003 में मुम्बई की फर्म मास्टर कन्सट्रक्शन इंजिनियर्स कान्ट्रेक्टर को नहरें बनाने का ठेका दिया था। विभाग के अफसरों की लापरवाही के कारण भुगतान राशि इतनी बढ़ गई कि भवानी सिंह रोड स्थित सिंचाई भवन को 27 करोड़ में नीलाम करने की नौबत आ गई है। ठेका कम्पनी के भागीदार मुश्ताक अब्दुल्ला ने यह राशि लेने के लिए कोर्ट मेें अलग-अलग पांच इजराय लगाई है। अपर जिला व सत्र न्यायालय क्रम सोलह के न्यायाधीश राजेन्द्र कुमार बंसल ने जल संसाधन विभाग और सिंचाई विभाग को आदेश में दिए है कि राज्य सरकार ने सभी न्यायिक अधिकारों का प्रयोग कर लिया है, लेकिन सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट से कोई रिलीफ नहीं मिली है। राशि वसूली के लिए कुर्क शुदा सम्पत्ति को विक्रय, नीलाम किया जाना न्यायोचित प्रतीत होता है। लिहाजा विक्रय की उद्घोषणा के निबन्धनों (शर्तों) को तय करने के लिए नोटिस जारी होकर पत्रावली एक दिसम्बर तय की गई है।

– हाईकोर्ट का आदेश मान लेते तो इतनी नहीं बढ़ती राशि

सीमांत क्षेत्र में नहर बनाने के लिए सिंचाई विभाग ने फर्म को 2002-03 में 13 करोड़ रुपए का ठेका दिया था। 23 अगस्त, 2005 तक यह काम पूरा करना था। पूर्व में बनी हुई नहरों को कम्पनी ने तोड़ने से मना कर दिया और कहा कि ठेके में यह शर्त तय नहीं थी। सरकार और कम्पनी में विवाद हुआ। फर्म ने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया। हाईकोर्ट ने जस्टिस आई.एस. इसरानी की अध्यक्षता में 3 सदस्यीय आर्बीट्रेटर नियुक्त किया। मध्यस्थ ने 15 दिसम्बर, 2011 को कम्पनी के हक में निर्णय देते हुए सरकार पर 12 करोड़ रुपए 18 प्रतिशत ब्याज एवं 5 लाख रुपए के हर्जाने का अवार्ड जारी किया था। अफसरों ने इस आदेश को समय पर चुनौती नहीं दी। बाद में इनका दावा खारिज हो गया। कम्पनी ने वसूली कार्यवाही शुरू कर दी तो भी अधिकारी सोते रहे। अदालतों को यह बताया ही नहीं कि विवाद क्यों हुआ था। मियाद के आधार पर हाईकोर्ट व सुप्रीम कोर्ट में भी विभाग की अपीलें खारिज हो गई। साथ ही सरकार ने इसी कोर्ट में 20 अक्टूबर, 2016 को अर्जी पेश कर प्रकरण एक करोड़ रुपए की राशि का होने के आधार पर कॉमर्शियल कोर्ट में भेजने की प्रार्थना की। कोर्ट ने कहा कि कोर्ट में भेजने की कम्पनी के वकील ने सहमति नहीं दी है। इस कोर्ट को भेजने का अधिकार नहीं है। कोर्ट ने सरकार को इस आदेश के लिए डीजे कोर्ट में जाने की छूट दे दी। कोर्ट के आदेश पर 8 सितम्बर को कोर्ट अमीन ने कुर्क कार्यवाही भी कर ली। कम्पनी ने 10 हजार वर्गमीटर में बने दो मंजिला इमारत सिंचाई भवन की कीमत 30 करोड़ रुपए की बताई है। इसे नीलाम करके राशि दिलवाने की गुहार की है। सरकार की सुप्रीम कोर्ट में रिव्यू पीटिशन लम्बित है और कोर्ट के 8 सितम्बर के आदेश के खिलाफ हाईकोर्ट में प्रक्रिया लम्बित है, लेकिन सरकार को कहीं से भी स्टे नहीं मिला है।

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