• वजाहत अहमद

टोंक। देश में आए दिन सहिष्णुता और असहिष्णुता को लेकर बयानबाजी सामने आ रही है। सोश्यल मीडिया पर भी यह मुद्दा खूब छाया हुआ है। हर कोई विश्वगुरू कहे जाने वाले भारत को असहिष्णु होने की बात कह रहा है। पुरस्कार वापसी का दौर फिलहाल थम गया है। असहिष्णुता को लेकर कभी नेता तो कभी अभिनेता इसके पक्ष विपक्ष में अपने मत रख रहे हैं, जिसके चलते सड़क से संसद तक खूब बवाल मचा हुआ है। इन सबके बीच राजस्थान के टोंक जिले के सींदडा ग्राम पंचायत मुख्यालय पर सालों से संचालित राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय के छात्र साम्प्रदायिकता, सहिष्णुता और असहिष्णुता के विवादों से परे एक अलग ही अलख जगा रहे हैं। इस ग्राम पंचायत में एक भी मुस्लिम परिवार नहीं होने के बावजूद यहां के हिन्दू समाज के छात्र-छात्राएं उर्दू भाषा को पढऩे में खासी दिलचस्पी दिखा रहे हैं। उर्दू भाषा को मुस्लिम समाज के छात्र ज्यादा पसंद करते हैं और वे ही इस विषय में अध्ययन भी करते हैं, लेकिन यहां धर्म-जाति से ऊपर उठकर बच्चे उर्दू विषय को उतनी ही तल्लीनता से पढ़ रहे हैं, जैसे हिन्दी व दूसरे विषयों को। टोंक जैसे छोटे जिले के ग्रामीण क्षेत्र का यह स्कूल अपने आप में प्रदेश और देश के सामने आपसी भाईचारे, सहिण्णुता और एकता की नजीर पेश कर रहा है।

किस तरह तो एक तरफ पूरा देश सहिष्णु और असहिष्णुता पर बंटा हुआ है। आरोप-प्रत्यारोपों के दौर से देश का माहौल खराब और तनावपूर्ण चल रहा है। वहीं इन सब के बीच टोंक जिले के सिंदड़ा ग्राम पंचायत मुख्यालय पर संचालति राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय के बच्चे देश में एक ऐसी मिसाल बनकर सामने आए हैं, जो दुनिया में सबसे बडे लोकतंत्र के लिए जाने पहचाने वाले सहिष्णु भारत के सही रूप को दिखा रहा है। दरअसल उर्दू भाषा को मुस्लिम समाज की भाषा के रूप में देखा जाता रहा, लेकिन जिस तरह से इस स्कूल में हिन्दू समाज के बच्चे उर्दू को पढ़ रहे हैं, उससे लगता है कि किसी भाषा को वर्ग, धर्म या देश की सीमाओं में नहीं बांधा जा सकता है और ना ही किसी भाषा पर एक समाज का कोई अधिकार हो सकता है। इसी का उदाहरण सींदड़ा गांव में देखा जा सकता है। यहां एक भी मुस्लिम परिवार नहीं है और ना ही यहां के स्कूल में कोई भी मुस्लिम छात्र है लेकिन फिर भी यहां के विद्यालय में कक्षा 11 व 12 के सभी छात्र-छात्राएं उर्दू विषय पर अध्ययन कर रहे हैं। तीन साल पहले क्रमोन्नत हुए इस विद्यालय में ग्रामीणों की विशेष मांग के बाद उर्द विषय शुरू किया गया और आज कक्षा 11 में 48 और 12 में 52 छात्र-छात्राएं उर्दू विषय में पढ़ रहे हैं। ये उर्दू को बडे ही शौक से पढ़ते हैं बल्कि वह उर्दू जुबान को मीठी भाषा भी बताते हैं। छात्र कहते हैं कि इस विषय को पढने में उन्हे खासा मजा आता है। विद्यालय में अध्ययनरत छात्र-छात्राए उर्दू भाषा को पढऩे में खुद को सहज तो महसूस करते ही है। साथ ही इन्हे उर्दू भाषा में लिखी गजलों और शेरो-शायरियां पढऩे में बड़ा मजा आता है। इनसे जब पूछा गया कि उर्दू पर मुस्लिम समाज का एकाधिकार है और वे ही इसे पसंद करते हैं तो उनका कहना है कि भाषा किसी धर्म-मजहब या समाज की नहीं, बल्कि यह देश की भाषा है। यह भाषा देश की एकता की पहचान है। इतना ही नही यहां के दर्जनों छात्र और छात्राएं अब स्कूल से उर्दू सिख कर खुद उर्दू के टीचर भी बन गए हैं, जो प्रदेश के कई जिलों के स्कूलों में उर्दू पढा कर न सिर्फ अपना रोजगार चला रहा हैं बल्कि उर्दू भाषा को मजहब और जाति से दूर रखने की भी सीख दे रहे हैं। इतना ही नहीं यहां संविदा पर पढ़ा रहे शिक्षक सीताराम नायक भी बच्चों की लग्न को देख कई बार अतिरिक्त कक्षा लगा लेते है। वे कहते हैं कि आस-पास कई किलोमीटर क्षेत्र में एक भी मुस्लिम परिवार नहीं है। फिर भी यहां के छात्र उर्दू पढ़ रहे है, जो सहिष्णु भारत की सहिष्णुता की एक जीती जागती मिसाल है।

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