Rajasthan

श्याम शर्मा, जयपुर। विधानसभा चुनावों से पहले भारतीय जनता पार्टी के अंदरूनी हल्कों में ये चर्चा तो गरम है कि इस बार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और पार्टी अध्यक्ष अमित शाह की जोड़ी राजस्थान में आधे से ज्यादा विधायकों को टिकट नहीं देगी। इसलिए सभी विधायक ही नहीं मंत्री तक अपने अपने भविष्य को लेकर चिंतित नजर आ रहे हैं। सभी को अपनी जमीन खिसकती नजर आ रही है। ज्यादातर विधायक तो इसी सोच में डूबे हैं कि वे अपने क्षेत्र में ऐसा क्या करें कि पार्टी उसे फिर से टिकट दे लेकिन किसी को मुकम्मल विचार नहीं सूझ रहा है।

उधर पार्टी के रणनीतिकारों के यहां से छन कर आ रही खबरों को सही माने तो इस बार ऐसा लग रहा है कि पार्टी दिल्ली के एमसीडी चुनावों की तर्ज पर राजस्थान में भी विधानसभा टिकटों का बंटवारा करेगी। यानी पुराने चेहरों में से किसी को टिकट नहीं देकर फ्रेश व युवा उम्मीदवारों को मैदान में उतार कर जीत का नया रिकार्ड बनाने की योजना पर विचार किया जा रहा है। यह तो सभी को मालूम में है प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के बीच में अच्छी कैमिस्ट्री नहीं है। बार बार मुख्यमंत्री को बदलने और उन्हें केंद्र में मंत्री बनाने की अफवाहों को यूं ही हवा नहीं मिल जाती लेकिन हर बार इस अफवाह को तेज हवाएं उड़ा कर ले जाती है। इसके बावजूद पार्टी के लोगों में ही असमंजस की ऐसी स्थिति बन गई है कि वे ही इन अफवाहों को हवा देने में लगे हुए हैं। अगर पार्टी के लोगों के ही व्हाट्सएप ग्रुप चेक किए जाएं तो अधिकतर उनमें ऐसे संदेश एक-दूसरे को भेजने के प्रमाण मिल जाएंगे जिनमें पार्टी के खिलाफ हवा बनने की धारणा को पुख्ता किया जा रहा है। अभी तो हद ही हो गई कि आरएसएस के नाम से ही एक सर्वे का संदेश चल निकला है कि नरेंद्र मोदी ही फिर से सत्ता में नहीं आ सकते। ये वे ही लोग है जो सत्ता से दूर रहने का गम नहीं झेल पा रहे हैं और चेहरे छिपा कर असंतुष्टों की जमात में शामिल हो गए हैं। उन्हें इस बात की चिंता नहीं है कि कौन मुख्यमंत्री बने लेकिन उन्हें केवल इस बात से मतलब है कि वसुंधरा राजे हट जाए। ऐसे माहौल का पूरी ताकत से सामना केवल वसुंधरा राजे ही कर सकती है, कोई दूसरा मुख्यमंत्री होता तो अब तक बगावत के झंडे निकल पड़ते।

पार्टी के रणनीतिकारों को राजस्थान के ऐसे माहौल का पूरी तरह से पता है और वे असंतोष के इस माहौल को हर तरह से दबाना चाहते हैं। अपने ही विधायकों के टिकट कटने से उन्हें बगावत का ज्यादा खतरा इसलिए भी नहीं है कि वे कांग्रेस की तरफ नहीं जा सकते। पार्टी टिकट कटने वाले विधायकों में से अधिकतर को दूसरे पदों पर खपाने का लालच देकर भी चुप रख सकती है। बाकी विधायकों में ऐसा दम नहीं है कि वे मोदी और शाह की जोड़ी को आंख दिखाकर टिकट हासिल कर सके। ऐसे में नए चेहरों को आगे लाने का प्रयोग पार्टी में नई जान फूंकने का काम कर सकता है। ये नए चेहरे एजुकेशन, सोशल वर्क और तकनीक के मामले में पुराने विधायकों से कहीं आगे रहने वाले ही होंगे। देखना यह है कि कांग्रेस इस प्रयोग के आगे कहां ठहरती है क्योंकि उसके पुराने जमे जमाए नेताओं से तो उनकी पार्टी के लोग ही आजिज आ चुके हैं। उसे भी नए चेहरों पर ही दांव लगाना पड़ेगा नहीं तो वह चौंकाने वाले परिणाम देखने की हालत में पहुंच सकती है।

वैसे.. माना ये भी जा रहा है और जरुरी भी है कि 10 से 15 प्रतिशत सीटों पर कद्दावर नेताओं को मौका दिया जाए। ऐसे उम्मीदवारों को तो टिकट देना ही पड़ेगा जो अपने दम पर सीट हर हाल में निकाल सकते हैं। फिर चाहे वो पुराने चेहरे हो बीजेपी इस बार राजस्थान में फिर जीत का रिकार्ड बनाना चाहेगी।

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