अजमेर। ‘‘राजस्थानी भाषा के संवर्द्धन एवं संरक्षण के लिये राज्यभर में प्रत्येक जिले में एक गांव ‘राजस्थानी साहित्य गांव’ के रूप में विकसित किये जाएगा। इन गांवों में राजस्थानी साहित्य की सभी विधाओं में प्रकाशित साहित्य, पुस्तकें, राजस्थानी भाषा पत्र-पत्रिकाएं पठनार्थ एवं ज्ञानार्थ रखी जाएगी। आज चारण साहित्य शोध संस्थान में ‘राजस्थानी भाषा, संरक्षण, संवर्द्धन एवं उन्नयन’ विषय पर राष्ट्रीय गोष्ठी में सर्व सम्मति से एक प्रस्ताव पारित कर उक्त निर्णय लिया गया। प्रस्ताव में उपस्थित प्रतिनिधियों ने एक संकल्प लिया कि प्राथमिक शिक्षा में शिक्षा का माध्यम मातृभाषा राजस्थानी को बनाने के लिए राजस्थानी भाषा के साहित्यकार पाठ्यक्रम निर्माण हेतु विचारार्थ पुस्तकें तैयार करें।
आज की संगोष्ठी में यह भी निश्चित किया गया कि राजस्थानी भाषा के प्रचार प्रसार एवं प्रभाव को बढ़ाने के लिए राजस्थानी भाषा एवं कवि-सम्मेलन, खयाल, नाटक, पड़, बात एवं छनद पाठ को प्रोत्साहित करने के लिए इस वर्ष प्रत्येक जिले में कम से कम एक कार्यक्रम वर्षभर में अवश्य करेंगे। संगोष्ठी में यह भी प्रस्ताव पारित किया गया कि सभी समारोहों में अतिथियों तथा वक्ताओं का सम्मान माल्यार्पण के स्थान पर राजस्थानी भाषा का साहित्य भेंट कर किया जाएगा। राष्ट्रीय संगोष्ठी में राजस्थानी भाषा को संविधान की आठवीं अनुसूची में जोड़ने, विद्यालयों, महाविद्यालयों में राजस्थानी भाषा एवं साहित्य के अध्ययन को प्रोत्साहित करने, राजस्थानी भाषा की पुस्तकों को विद्यालयों तथा हेतु महाविद्यालयों के पुस्ताकालयों में खरीदने हेतु आग्रह करेगें। आज के कार्यक्रम में राजस्थान उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों द्वारा मातृभाषा दिवस पर न्यायालय के प्रकरण की कार्यवाही राजस्थानी भाषा में सम्पादित कर राजस्थानी भाषा के गौरवशाली इतिहास को सम्मानित करने पर आभार प्रस्ताव पारित किया गया।

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