नयी दिल्ली। दिल्ली उच्च न्यायालय ने आज कहा कि कोई मामला लंबित रहने के दौरान मीडिया किसी को दोषी नहीं
ठहरा सकता और न ही वह किसी की ओर इंगित कर सकता है कि कौन दोषी है। इसके साथ ही अदालत ने एक चैनल को सुनंदा पुष्कर मामले से जुड़ी खबरों के प्रसारण के दौरान ‘‘संतुलित’’ रहने को कहा। उच्च न्यायालय ने कहा कि खबरों को कवर करने के मीडिया के अधिकार पर रोक नहीं लगायी जा सकती लेकिन ‘‘किसी व्यक्ति के चेहरे पर माइक्रोफोन थोपने की संस्कृति को निरूत्साहित करने की जरूरत है।’’ न्यायमूर्ति मनमोहन ने 61 पृष्ठों के फैसले में कहा कि किसी खबर से
प्रभावित व्यक्ति को अपनी बात कहने का विकल्प दिया जाना चाहिए लेकिन अगर वह नहीं बोलना चाहता हो तो उसे बोलने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता।
अदालत ने कहा कि हर व्यक्ति या आरोपी को ‘‘चुप रहने का अधिकार है’’ और उसका सम्मान करने की जरूरत है। साथ ही अदालत ने कहा कि मीडिया को खबरें कवर करने का अधिकार है और उस पर रोक नहीं लगायी जा सकती। लेकिन जांच के अधीन मामलों से जुड़ी खबरों के प्रसारण में संवेदनशील होना चाहिए और सतर्कता बरतनी चाहिए। अदालत ने यह टिप्पणी कांग्रेस सांसद शशि थरूर के तीन आवेदनों पर की जिनमें पत्रकार अर्णव गोस्वामी और रिपब्लिक टीवी को उनकी पत्नी सुनंदा पुष्कर की मौत से जुड़े मामले में खबरों के प्रसारण पर रोक लगाने का अनुरोध किया गया है। अदालत ने पत्रकार और टीवी चैनल पर रोक लगाने से इंकार कर दिया लेकिन कहा कि सुनंदा पुष्कर की मौत से जुड़ी खबरों के प्रसारण के पहले उन्हें थरूर से उनका पक्ष मांगना चाहिए।


































