sonia gandhi

नयी दिल्ली: आज अपने बेटे राहुल गांधी को कांग्रेस की कमान सौंपने वाली सोनिया गांधी के बारे में किसी वक्त सोचा भी नहीं जा सकता था कि वह गांधी-नेहरू परिवार की राजनीतिक विरासत की उत्तराधिकारी होंगी। हालांकि, भारत की सबसे पुरानी राजनीतिक पार्टी में सबसे लंबे समय तक अध्यक्ष पद पर रहकर सोनिया ने इतिहास रच दिया।राजनीति में सोनिया का पदार्पण जितने जोर-शोर से हुआ, उतनी ही खामोशी से उन्होंने कांग्रेस अध्यक्ष पद से सेवानिवृति ली।

कल 71 साल की सोनिया ने पत्रकारों से कहा था, ‘‘मेरी भूमिका अब रिटायर होने की है।’’ सोनिया की इस टिप्पणी ने पार्टी के नेताओं को पसोपेश में डाल दिया और फिर उन्हें आनन-फानन में सामने आकर सफाई देनी पड़ी कि सोनिया सिर्फ कांग्रेस अध्यक्ष पद से सेवानिवृत हो रही हैं, राजनीति नहीं छोड़ रहीं।लेकिन पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की बहू सोनिया चौंकाने वाले निर्णय करने की खातिर जानी जाती हैं । राहुल को परिवार के ऐसे उत्तराधिकारी के तौर पर देखा जाता रहा है जो राजनीति एवं पार्टी में बड़ी भूमिका निभाने से हिचकते हैं । हालांकि, शुरू में सोनिया भी राजनीतिक भूमिका निभाने के मामले में राहुल की ही तरह हिचक रही थीं ।

कहा तो यह भी जाता है कि 1984 में इंदिरा गांधी की हत्या के बाद कांग्रेस के नेताओं ने जब राजीव गांधी से प्रधानमंत्री की कुर्सी संभालने का आग्रह किया था तो सोनिया ने अपने पति से विनती की थी कि वह प्रधानमंत्री नहीं बनें । दरअसल सोनिया अपने परिवार की सुरक्षा को लेकर चिंतित थीं ।सात साल बाद 1991 में राजीव की हत्या होने के बाद जब पार्टी के नेताओं ने सोनिया से कांग्रेस की कमान संभालने का अनुरोध किया तो उन्होंने उनकी गुजारिश ठुकरा दी ।

इसके सात साल बाद 1998 में जब कांग्रेस पार्टी केंद्र में बेहद कमजोर थी और उसके पास महज चार राज्यों की सत्ता थी, उस वक्त वह पार्टी की कमान संभालने पर सहमत हुईं । कई वरिष्ठ नेताओं की ओर से कांग्रेस छोड़कर चले जाने और अपने-अपने क्षेत्रीय संगठन बना लेने के बाद जब पार्टी के नेताओं ने सोनिया को अध्यक्ष पद संभालने के लिए मनाया, तब जाकर वह यह जिम्मेदारी संभालने पर राजी हुईं।जब कांग्रेस बेहद कमजोर थी, उस वक्त सोनिया ने 2004 में पार्टी को जीत दिलाकर केंद्र की सत्ता पर काबिज कराया। यह ऐसा वक्त था जब मीडिया का एक हिस्सा सोनिया को भारत की सबसे शक्तिशाली महिला करार दे रहा था ।

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