नई दिल्ली। तमिलनाडु की मुख्यमंत्री जयललिता का सोमवार रात अपोलो अस्पताल में निधन हो गया। उनके निधन के साथ ही तमिलनाडू की राजनीति में सबसे असरदार रहा अम्मा युग भी खत्म हो गया। हालांकि सदन में बहुमत होने के कारण जयललिता की पार्टी को कोई परेशानी नहीं है, लेकिन सर्वमान्य नेता नहीं होने के कारण अन्नाद्रमुक में बिखराव की चर्चा अभी से शुरु हो गई है। खैर यह समय बताएगा कि जयललिता के बाद अन्नाद्रमुक का क्या भविष्य रहेगा, लेकिन यह सब जानते है कि जयललिता ने हमेशा ही तमिलनाडू के साथ राष्ट्रीय राजनीति में भी अपना परचम बनाए रखा। हमेशा अपनी ही शर्तों और पार्टी हित में कार्य किया। जिसने उनकी मांग या बात को नहीं माना, उसको नुकसान ही उठाना पड़ा। चाहे वे पूर्व प्रधानमंत्री अटलबिहारी वाजपेयी की सरकार का मसला क्यों नहीं हो। जब अटल बिहारी वाजपेयी ने उनकी मांगों को नहीं माना तो जयललिता ने समर्थन वापस ले लिया और वाजपेयी सरकार मात्र एक वोट से विश्वासमत गंवा दी। ऐसे और भी कई उदाहरण है, जो जयललिता की दबंग छवि को तो दर्शाते हैं, साथ ही विवादों के घेरे में भी रहते आए हैं। पिछले तीन दशकों से तमिलनाडु की राजनीति में महत्वपूर्ण सितारा रहकर अपनी शर्तों पर राजनीति करने वाली जयललिता तमाम अड़चनों और भ्रष्टाचार के मामलों से झटके के बावजूद वह राजनीति में वापसी करने में सफ ल रहीं थीं। छठे और सातवें दशक में तमिल सिनेमा में अभिनय का जादू बिखेरनी वाली जयललिता अपने पथप्रदर्शक और सुपर-स्टार एमजीआर की विरासत को संभालने के बाद पांच बार तमिलनाडु की मुख्यमंत्री बनी। राजनीति में तमाम झंझावतों का सामना करते हुए उन्होंने अपनी राजनीति सूझबूझ और मेहनत के दम पर अपना मुकाम हासिल किया। कर्नाटक के मैसूर में एक ब्राह्मण परिवार में जन्मी जयललिता ब्राह्मण विरोधी मंच पर द्रविड़ आंदोलन के नेता अपने चिर प्रतिद्वंद्वी एम.करूणानिधि से उनकी लंबी राजनीतिक भिड़ंत रही। राजनीति में 1982 में आने के बाद औपचारिक तौर पर उनकी शुरूआत तब हुई, जब वह अन्नाद्रमुक में शामिल हुई। 1987 में एम.जी.रामचंद्रन के निधन के बाद पार्टी को चलाने की जिम्मेदारी उनके कंधों पर आ गई और उन्होंने व्यापक राजनीतिक सूझबूझ का परिचय देते हुए ना केवल पार्टी को राज्य में मजबूती दी, बल्कि पांच बार मुख्यमंत्री भी बनी। हालांकि राज के दौरान भ्रष्टाचार के मामलों में फंसी भी। जेल भी गई, लेकिन आरोप साबित नहीं होने पर बाहर भी आई। भ्रष्टाचार के मामलों में जयललिता को दो बार पद छोडऩा पड़ा लेकिन दोनों मौके पर वह नाटकीय तौर पर वापसी करने में सफ ल रहीं। जयललिता ने बोदिनायाकन्नूर से 1989 में तमिलनाडु विधानसभा चुनाव में जीत हासिल की और सदन में पहली महिला प्रतिपक्ष नेता बनीं। इस दौरान राजनीतिक और निजी जीवन में कुछ बदलाव आया जब जयललिता ने आरोप लगाया कि सत्तारूढ़ द्रमुक ने उनपर हमला किया और उनको परेशान किया गया। अलबत्ता पांच साल के कार्यकाल में भ्रष्टाचार के आरोपों, अपने दत्तक पुत्र की शादी में जमकर दिखावा और उम्मीदों के अनुरूप प्रदर्शन नहीं करने के चलते उन्हें 1996 में अपने चिर प्रतिद्वंद्वी द्रमुक के हाथों सत्ता गंवानी पड़ी। उनके खिलाफ आय के ज्ञात ोत से अधिक संपत्ति सहित कई मामले दायर किए गए। अदालती मामलों के बाद उन्हें दो बार पद छोडऩा पड़ा। पहली बार 2001 में दूसरी बार 2014 में। उच्चतम न्यायालय द्वारा तांसी मामले में चुनावी अयोग्यता ठहराने से सितंबर 2001 के बाद करीब छह महीने वह पद से दूर रहीं। पांच बार तमिलनाडु की मुख्यमंत्री रहीं जयललिता ने कई सामाजिक क्षेत्र की योजनाएं शुरू की, जिसने जयललिता को काफी लोकप्रियता दिलाई। पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी और पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी से संबंध अच्छे रहे, लेकिन जब उनकी मांगे नहीं सुनी गई तो जयललिता ने समर्थन वापस लेने और आंख दिखाने में कभी गुरेज नहीं किया। तमिलनाडु के पूर्व मुख्यमंत्री करुणानिधि से उनके हमेशा से ही संबंध तनावपूर्ण रहे। इतने तनावपूर्ण की सत्ता में आते ही वे एक-दूसरे को कानूनी शिकंजे में घेरने में नहीं चूकते थे।

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