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अर्थशास्त्रियों और नीति निर्माताओं ने न्यूनतम आय गारंटी के 500 वर्ष पुराने आइडिया पर गंभीरता से विचार शुरू कर दिया है। इसका सबसे चर्चित रूप यूनिवर्सल बेसिक इनकम (यूबीआई) है। इसके तहत सरकार हर वयस्क को निश्चित धनराशि देगी। इसका उनकी संपत्ति, रोजगार से आय और उनके काम से कोई संबंध नहीं होगा। 1516 में थॉमस मूर की पुस्तक-यूटोपिया में यह विचार पेश किया गया था। भारत और अमेरिका में भी इस आइडिया पर बहस चल रही है। कई देशों में इसका परीक्षण हो रहा है। इस वर्षफिनलैंड ने बेरोजगार नागरिकों को बिना शर्त कुछ धन देने की शुरुआत की है। दो वर्ष के राष्ट्रीय पायलट प्रोग्राम के तहत २५ से 58 वर्ष की आयु के 2000 बेरोजगारों को 37000 रुपए दिए जा रहे हैं। नौकरी लगने के बाद भी उन्हें यह पैसा मिलता रहेगा। कनाडा, नीदरलैंड्स और इटली में भी ऐसे प्रयोगों की पहल हुई है। सिलिकॉन वैली से भी यूबीआई के आइडिया को समर्थन मिला है। बिल गेट्स, एलोन मस्क जैसे टेक्नोलॉजी के दिग्गज सोचते हैं, यूबीआई अपरिहार्य है

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