Ashram

– राकेश कुमार शर्मा
जयपुर। राजधानी जयपुर में जून 2016 में हुई दो मासूम बच्चियों के साथ दुष्कर्म की घटनाओं ने ना केवल समाज को झकझोर दिया, बल्कि राजस्थान को कलंकित कर गई। बीकानेर में तो इससे भी दर्दनाक वाकया हुआ। वहां एक नाबालिग बालिका से दुष्कर्म के बाद आरोपियों ने उसे जलाकर मारने का प्रयास किया। इलाज के दौरान उसकी मौत हो गई। ये सभी घटनाएं पिछले महीने जून में हुई। इससे पहले भी सीकर में दो अलग-अलग घटनाओं में बच्चियों से दुष्कर्म की घटना हो चुकी है। कोटा, जोधपुर, जैसलमेर, अजमेर में भी समाज को कलंकित करने वाली दुष्कर्म के मामले सामने आ चुके हैं। प्रदेश में महिलाओं के साथ दुष्कर्म मामले तो बढ़ रहे हैं, वहीं अब मासूम व छोटी बच्चियों के साथ भी ऐसे घिनौने कृत्य तेजी से सामने आ रहे हैं। राजस्थान ही नहीं देश के कई हिस्सों में भी ऐसे मामले बढ़ रहे हैं। नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के मुताबिक वर्ष 2014 में बारह साल की बच्चियों से दुष्कर्म के 1745 मामले दर्ज हुए। इनमें से 56 मामले राजस्थान के थे। आठ बच्चियां ऐसी थी, जो छह साल से कम की थी और 48 बच्चियां की उम्र छह से बारह साल की थी। 12 से 16 साल की 315 नाबालिग बालिकाओं से भी दुष्कर्म हुआ, जबकि देश में इस आयुवर्ग में दुष्कर्म का आंकडा 5053 पहुंच गया। पूरे देश में करीब 37 हजार मामले दुष्कर्म के दर्ज हुए थे, जिनमें राजस्थान के मामले 3759 थे। वर्ष 2015 में भी इतने ही मामले राजस्थान में दर्ज हुए। मासूम बच्चियों व बालिकाओं के साथ दुष्कर्म का प्रतिशत भी लगभग बराबर सा रहा। हालांकि इस साल (वर्ष 2016) में दुष्कर्म के मामले बढ़े हैं, खासकर बच्चियों व किशोरियों के साथ, जो समाज और कानून के हिसाब से चिंताजनक है। पिछले महीने जिस तरह से बच्चियों के अपहरण, दुष्कर्म और हत्या के मामले सामने आए है, उससे साफ जाहिर है कि समाज में आदर्शों व संस्कारों का तेजी से पतन हो रहा है। नशाखोरी बढ़ रही है, जिसके चलते अपराध भी बढ़ रहे हैं। जयपुर, सीकर और बीकानेर में बच्चियों के साथ हुई घटनाओं के दौरान भी आरोपी शराब के नशे में थे। मनोवैज्ञानिक भी मान रहे है कि अपराधों के पीछे नशाखोरी बड़ी वजह है, साथ ही समाज में नैतिक पतन, परिवार में बिखराव व अलगाव, कमजोर कानून और पुलिस कार्यप्रणाली भी एक बड़ा कारण है, जिसके चलते ऐसी घिनौनी घटनाएं सामने आ रही हैं। जयपुर में इलाज के लिए महाराष्ट्र से आई दिव्यांग मां की तीन साल की अबोध बालिका को सोते वक्त अलवर निवासी आरोपी पूरण प्रजापत सवाई मानसिंह अस्पताल परिसर से ही उठाकर ले गया और उससे दुष्कर्म करके फरार हो गया। रात भर पुलिसवाले और उसकी मां बच्ची को तलाशते रहे। दूसरे दिन सुबह वह लहुलूहान हालात में धन्वन्तरि अस्पताल के पास रोती मिली। उसे जे.के. लोन अस्पताल में इलाज चल रहा है। इसी तरह ट्रांसपोर्ट नगर गुरूद्वारे के बाहर खेल रही छोटी बालिका को ऑटो चालक राजू अगवा कर ले गया और उसके साथ दुष्कर्म किया। फिर उसे आगरा रोड पर सुनसान स्थान पर छोड़ दिया था। हालांकि पुलिस ने दोनों आरोपियों को जल्द ही गिरफ्तार करने में सफलता प्राप्त कर ली। दोनों आरोपी पक्के नशेडी निकले। शराब व दूसरे नशा का सेवन करते थे। वारदात के दौरान भी दोनों ने शराब पी रखी थी। परिवार और बच्चे होने के बावजूद दोनों आरोपियों ने बच्चियों के साथ दुष्कर्म करने का घिनौना कृत्य किया। गिरफ्तारी के बाद भी आरोपियों के चेहरे और भावों में कोई ग्लानि नहीं दिखी। पुलिस के मुताबिक पूरण और राजू रोजाना शराब व दूसरे तरह के नशे करते थे। नशे में घरवालों से मारपीट करने से भी नहीं चूकते थे। पुलिस दोनों आरोपियों से कड़ी पूछताछ कर रही है, ताकि कोई दूसरे आपराधिक कृत्य अगर इन्होंने किए हैं तो वे सामने आ सके। अब पुलिस और कानून आरोपियों को सजा देगा, लेकिन इनकी करतूतों का अंजाम दोनों बच्चियों को भुगतान पड़ रहा है। खेलने-कूदने और बोलना सीखने की उम्र की ये बच्चियां जिंदगी और मौत के बीच इलाज करवा रही है। बच्चियां तो सहमी-डरी रहती है, वहीं उनके माता-पिता व भाई-बहन भी पीडित बच्ची की दुर्दशा देखकर सहम जाते हैं। जयपुर में हुई इन घटनाओं से लोगों में आक्रोश भी दिखा। सरकार और पुलिस ने भी तत्परता दिखाई। मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे व गृहमंत्री गुलाब चंद कटारिया ने पीडित बच्चियों के इलाज की व्यवस्था के आदेश दिए, साथ ही आरोपियों के खिलाफ जल्द से जल्द चालान पेश करने के निर्देश दिए हैं। हालांकि पहले भी ऐसे जघन्य अपराध सामने आने पर सरकार और अफसर ऐसे बयानबाजी करते रहते हैं, लेकिन जैसे ही मामला ठण्डा पडता है, वैसे ही त्वरिच जांच, तय समय में चालान और पीडितों व गवाहों की सुरक्षा जैसे सवाल भुला दिए जाते हैं। बच्चियों के मामले में तो प्रशासन ने तत्परता दिखाई, लेकिन जयपुर के पास जमवारामगढ की एक महिला से दुष्कर्म, गंभीर मारपीट और शरीर को गोदने जैसी घटना के बाद भी पुलिस ने मामला दर्ज नहीं किया, बल्कि मीडिया में प्रकरण सामने आने पर पुलिस आगे आई। सरकार ने भी दोषी अफसरों व पुलिसकर्मियों पर कोई कार्रवाई नहीं की, जबकि सुप्रीम कोर्ट, हाईकोर्ट और सरकार ने भी स्पष्ट निर्देश दे रखे हैं कि दुष्कर्म मामले में शिकायत को गंभीरता से लेते हुए प्राथमिकी दर्ज करें और त्वरित जांच भी। लेकिन कोई मामला उछलता है तो सरकार और प्रशासन एक्टिव हो जाते हैं, अन्यथा पीडित भगवान और कोर्ट के भरोसे हैं।
– सख्त कानून के पक्ष में समाज
जे.के.लोन अस्पताल में भर्ती दोनों बच्चियां की चीखें अस्पताल परिसर में गूंजती रहती है। बच्चियां तो डरी-सहमी है, वहीं उनके परिजन, चिकित्सा स्टाफ और मरीज भी बच्चियों की हालात देखकर सहम जाते हैं। हालांकि सरकार इनके इलाज का पूरा खर्चा वहन कर रही है, लेकिन बोलना सीखने और खेलने-कूदने की इस उम्र में बच्चियों को जो पीडा भुगतनी पड़ रही है, उसे सोचकर हर किसी के मन में उनके प्रति जहां सहानुभूति है, वहीं दुष्कर्मियों के प्रति खासा गुस्सा भी दिखा। जयपुर में घटित दोनों घटनाओं के बाद लोगों के बीच और सोश्यल मीडिया में यह मामला बहस का मुद्दा बना हुआ है। बहस यह कि आखिर ऐसे अपराधों पर रोक कैसे लगे। क्यों नहीं बच्चियों से दुष्कर्म करने वाले आरोपियों के खिलाफ अलग से सख्त कानून बनाया जाए। बहस में हर किसी का यह ही विचार सामने आया कि दोषियों को फांसी मिले, समाज से बहिष्कृत किया जाए और इससे भी अगर कोई सख्त सजा का प्रावधान कानून में हो सके तो उसे लागू किया जाए। सही भी है, जब तक कठोर कानून के प्रावधान नहीं होंगे, तब तक ऐसी वारदातों और घटनाओं पर अकुंश नहीं लग पाएगा। लचर कानून और अनुसंधान में खामियों के चलते अधिकांश मामलों में आरोपी या तो बरी हो जाते हैं या सजा इतनी कम मिलती है कि आरोपियों के कानून के प्रति कोई भय नहीं रहता और ना ही समाज में सख्त कानून का संदेश जा पाता है। जिस तरह दिल्ली के निर्भया काण्ड के बाद लोगों के आक्रोश और जनआंदोलन के बाद केन्द्र सरकार को नाबालिगों से दुष्कर्म व महिलाओं से जुड़े आपराधिक प्रकरणों में कड़े प्रावधान करने पड़े। वैसे ही सख्त कानून की आवश्यकता बच्चियों व नाबालिग बालिकाओं से दुष्कर्म और उनसे जुड़े अपराधों में महसूस की जाने लगी है। तभी ऐसे अपराधों पर रोक लग सकेंगी और दोषियों में भय बनेगा।
– दुष्कर्म मामलों में राजस्थान दूसरे पायदान पर
दुष्कर्म मामलों में राजस्थान देशभर में दूसरे नंबर पर है। नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़ों के मुताबिक वर्ष 2014 में देशभर में दुष्कर्म के 37413 प्रकरण दर्ज हुए। इनमें 3759 प्रकरण राजस्थान में दर्ज हुए, जो पूरे देश में दूसरे पायदान पर आते हैं। इससे पहले मध्यप्रदेश का नंबर है, वहां 5076 प्राथमिकी दर्ज हुई। 3467 मामलों के साथ उत्तरप्रदेश तीसरे स्थान पर रहा। हालांकि मासूम और नाबालिग बच्चियों से दुष्कर्म मामलों में राजस्थान की स्थिति दूसरे राज्यों के मुकाबले काफी नीचे रही। पूरे देश में 470 मासूम बच्चियों (छह साल से छोटी) से दुष्कर्म हुआ। सर्वाधिक घटनाएं महाराष्टÓ में 112 हुई, वहीं राजस्थान में आठ घटनाएं हुई। वहीं छह से बारह साल तक की बच्चियों के मामले ज्यादा सामने आए। करीब 367 मामले दर्ज इस साल दर्ज हुए, जो काफी चिंताजनक है, हालांकि मध्यप्रदेश, उत्तरप्रदेश, दिल्ली, छत्तीसगढ़ में ये आंकड़े राजस्थान से दो से तीन गुणा में दर्ज हुए हैं। 18 से 30 साल की उम्र की महिलाओं के साथ दुष्कर्म मामले राजस्थान में सर्वाधिक सामने आए। करीब 2073 मामले इस आयुवर्ग की महिलाओं के साथ दर्ज हुए, जो पूरे देश में अव्वल है। एक दुखद और चिंताजनक पहलू यह भी आंकड़ों में सामने आया है कि बुजुर्ग महिलाएं भी सूबे में सुरक्षित नहीं है। साठ साल से ऊपर की महिलाओं से रेप संबंधित पूरे देश में 88 प्रकरण दर्ज हुए, जिसमें सत्रह मामले राजस्थान के थे। इसके बाद महाराष्टÓ और मध्यप्रदेश के क्रमश 11 व 12 मामले दर्ज हुए। वर्ष 2015 में भी कमोबेश ऐसी स्थिति महिलाओं से जुड़े अपराधों की रही। वर्ष 2016 के शुरुआती तीन महीने (जनवरी, फरवरी और मार्च) में 867 प्रकरण दुष्कर्म के सामने आ चुके हैं। करीब एक दर्जन घटनाएं छह साल की मासूम बच्चियों के साथ घटित हो चुकी है। इसी अवधि में राजस्थान में छेड़छाड़ के करीब ग्यारह सौ प्रकरण दर्ज हो चुके हैं। नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के महिला उत्पीडऩ से जुड़े आंकडे दर्शाते हैं कि राजस्थान में महिलाओं की स्थिति ठीक नहीं है। दुष्कर्म, छेड़छाड़ के अलावा दहेज प्रताडऩा, घरेलू हिंसा, मारपीट की घटनाएं भी बढ़ रही है। इसे कानून में कमी कहे या पुलिस कार्यप्रणाली की लापरवाही और इकबाल में कमी, जिसके चलते अपराधियों के हौंसले बुलंद है। सरेआम महिलाओं को बेइज्जत करने की घटनाएं हो रही है।
– महिला उत्पीडऩ में भी अव्वल
दुष्कर्म ही नहीं महिलाओं से जुड़े दूसरे उत्पीडऩों के मामलों में भी राजस्थान की स्थिति ठीक नहीं है। महिला उत्पीडऩ प्रकरणों में राजस्थान पूरे देश में तीसरे नंबर पर आ रहा है। नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़ों के मुताबिक वर्ष 2014 में देश में करीब 3.37लाख प्रकरण महिला उत्पीडऩ के दर्ज हुए, जिसमें 38467 हजार मामलों के साथ उत्तरप्रदेश पहले और 38299 प्रकरणों के साथ पश्चिम बंगाल दूसरे स्थान पर रहा, वहीं इसके बाद राजस्थान में करीब 31 हजार प्राथमिकी दर्ज हुई महिला उत्पीडऩ को लेकर। वर्ष 2013 में भी यही स्थिति रही और 27 हजार मामले राजस्थान में दर्ज किए गए। आधे से अधिक प्रकरण तो दहेज प्रताडऩा और छेड़छाड़ से संबंधित थे, वहीं दुष्कर्म, घरेलू हिंसा, अपहरण और मर्डर के मामले भी बड़ी संख्या में दर्ज किए गए।
-अपनों में ही असुरक्षित
नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकडे बताते हैं कि दुष्कर्म की शिकार अधिकांश महिलाओं के साथ उनके नजदीकी रिश्तेदारों और परिचितों ने बलात्कार किया। तीन चौथाई प्रकरणों में पिता, भाई, चाचा-ताऊ व नजदीकी रिश्तेदारों के अलावा दोस्त और पड़ौसी मुलजिम सामने आए हैं। वर्ष 2014 में 3759 मामले दुष्कर्म के दर्ज हुए, जिसमें 3148 प्रकरणों में नजदीकी रिश्तेदार और परिचितों पर दुष्कर्म के आरोप लगे। करीब 84 फीसदी मामलों में रिश्तेदार और परिचित शामिल रहे। 3148 मामलों में से 59 मामलों में दादा, पिता, भाई पर दुष्कर्म करने की शिकायतें दर्ज हुई। तीन सौ मामलों में नजदीकी रिश्तेदारों ने अपनी ही सगे-संबंधी महिलाओं से दुष्कर्म किया। 860 मामलों में पड़ौसियों ने इस तरह की वारदात को अंजाम दिया। करीब 19 सौ प्रकरण ऐसे थे, जिसमें भी आरोपी पीडिता को अच्छी तरह से जानते-पहचानते थे और उनके दोस्त थे। 69 प्रकरण में सहकर्मी और वर्कर्स ने अपनी साथी महिलाओं के साथ बुरा बर्ताव किया। करीब सोलह फीसदी प्रकरण ऐसे सामने आए, जिसमें आरोपी पीडिता का परिचित नहीं थे। घर-परिवार की प्रताडऩा व अन्य किसी कारण से भागी गई युवती व बालिकाओं को दुष्कर्म का शिकार बनाया। नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के इन आंकड़ों से जाहिर है है कि घर-परिवार और अपने आस-पास के माहौल में ही महिलाएं सुरक्षित नहीं है। रिश्तेदार-परिचित और पड़ौसियों ने ही घर-परिवार की बालिकाओं व महिलाओं को शिकार बनाया। इस बारे में मनोचिकित्सक डॉ. राकेश यादव का कहना है कि संयुक्त परिवार टूटने और एकल परिवार में भी अलगाव और बच्चों पर ध्यान नहीं देने, महिलाओं के साथ बुरा और सौतेले व्यवहार रखने आदि कई कारण है, जिसके चलते घर-परिवार और अपने आस-पास के माहौल में ही महिलाएं व बालिकाएं असुरक्षित होने लगी है। इनका फायदा उठाकर रिश्तेदार और परिचित घर-परिवार की प्रताडऩा व सौतेल व्यवहार से मजबूर महिलाओं व बालिकाओं को अपना शिकार बना लेते हैं। ऐसे लोगों के वे सॉफ्ट टारगेट भी होते हैं। हाल ही जमवारामगढ़ में महिला के सिर व हाथ-पैर में गलत बातें गोदने और उसके नजदीकी रिश्तेदारों के दुष्कर्म की घटना भी इन वजह से हुई है। पति व उसके ससुराल वाले ही सरेआम उसके साथ मारपीट और गलत व्यवहार रखने लगे तो नजदीकी रिश्तेदारों ने महिला को अकेली देख और परिवार का सहयोग नहीं पाकर दुष्कर्म करते रहे। ऐसे ओर भी मामले हो चुके हैं, जब परिवारजनों के व्यवहार और सपोर्ट नहीं मिलने से दुखी युवतियों के साथ इस तरह की घटनाओं को अंजाम दिया गया। इस वजह से ही घर-परिवार की बच्चियों व महिलाओं के साथ रिश्तेदार व परिचित ऐसी कृत्य कर रहे हैं। डॉ. यादव का कहना है कि ऐसी वारदातों पर रोक तभी संभव है, जब परिवार की महिलाओं के प्रति सम्मान रखे और उन्हें इगनोर नहीं करे। बच्चों खासकर लड़कियों से दोस्ताना व्यवहार रखें और उन्हें उनके अच्छे-बुरे के बारे में बताते हुए हमेशा कोई भी दिक्कत होने पर उस बारे में अवगत कराने की सीख देंवे। अंजान व मतलबी लोगों से खुद भी दूरी रखे और परिवारजनों को भी उनसे दूर रहने की सलाह देते रहे। गलत संगत से दूर रहने और सकारात्मक सोच के दोस्तों व परिचितों के साथ रहने की सीख देते रहनी चाहिए। वहीं सरकार और प्रशासन को भी चाहिए जिस तरह से समाज में छोटी बच्चियों और महिलाओं के साथ गंभीर आपराधिक घटनाएं बढ़ रही है, उसकी रोकथाम और सतर्क रहने के लिए स्कूल-कॉलेज और सोसायटी में अवेयरनेस प्रोग्राम संचालित किए जाए।
– बच्चों का उत्पीडऩ भी बढ़ा
महिलाओं के ही नहीं बच्चों व किशोरवय के लड़के-लड़कियों के उत्पीडऩ के मामले में भी राजस्थान की स्थिति अच्छी कही नहीं जा सकती। हालांकि दूसरे राज्यों के मुकाबले काफी कम प्रकरण दर्ज है, लेकिन जो आंकड़े हैं वे चौंकाने वाले हैं। वर्ष 2014 में देश में करीब 90 हजार प्रकरण बच्चों के उत्पीडऩ संबंधित दर्ज हुए। इनमें से 39 सौ मामले राजस्थान के हैं। इनमें आधे मामले तो बच्चों के अपहरण और लापता होने से जुड़े हुए हैं। करीब छह सौ मामले बाल व जबरन विवाह से संंबंधित रहे। हालांकि पहले स्थान पर मध्यप्रदेश का नंबर है, यहां करीब पन्द्रह हजार प्रकरण सामने आए। इसके बाद उत्तरप्रदेश में 14 हजार, दिल्ली में 9 हजार, महाराष्टÓ में 8 हजार प्राथमिकी दर्ज हुई। आंकड़ों के हिसाब से राजस्थान सातवें नंबर है। ये आंकड़े 18 साल तक के बच्चों के है। एक लाख जनसंख्या (बच्चों की) में से 285 बच्चे हत्या, दुष्कर्म, अपहरण, मारपीट आदि आपराधिक मामलों के पीडित रहे। इनमें मर्डर के 73 तो रेप के 825 मामले भी दर्ज हुए।
– अभी भी त्वरित न्याय नहीं
सरकार और पुलिस प्रशासन कितने ही दावे करें कि दुष्कर्म व महिलाओं से जुड़े दूसरे गंभीर प्रकरणों में त्वरित कार्रवाई की जाती है, लेकिन आंकड़े अलग ही कहानी कहते हैं। कोई मामला अगर गंभीर हो जाता है तो सरकार व पुलिस प्रशासन उसमें त्वरित जांच, गिरफ्तारी और चालान पेश कर देते हैं। कोर्ट भी त्वरित सुनवाई करके फैसला सुना देती है, लेकिन अधिकांश मामलों में स्थिति ठीक नहीं है। जयपुर में जापानी महिला और जोधपुर में अमरीकन महिला के साथ हुए दुष्कर्म मामले में पुलिस और कोर्ट की त्वरित कार्रवाई व सुनवाई के चलते आरोपियों की गिरफ्तारी व सजा जल्द ही हो गई, लेकिन दूसरे सैकड़ों-हजारों दुष्कर्म व महिला उत्पीडऩ के मामले पुलिस थानों व कोर्ट की सुनवाई में लंबित पड़े हुए हैं। बहुत से प्रकरण तो गंभीर प्रवृत्ति के है, जिनमें आरोपियों की गिरफ्तारी नहीं होने, गिरफ्तारी के बाद जमानत मिलने पर आरोपी के फरार हो जाने, गवाहों व मुजरिमों के बयान नहीं होने से सुनवाई महीनों व सालों तक अटकी रहती है। इसका फायदा मुजरिम पक्ष को मिलता है। वह गवाहों को तोड़ता है तो पीडितों को धमकाकर राजीनामे के लिए मजबूर कर देता है। केस लम्बा खींचने पर गवाह बयानों से पलट जाते हैं। बहुत से मामलों में तो अभियोजन साक्ष्य व अनुसंधान कमजोर रहता है कि मुजरिम बरी तक हो जाते हैं। एजवोकेट संजय व्यास का कहना है कि दुष्कर्म व दूसरे गंभीर मामलों में जल्द से जल्द चालान पेश होने चाहिए। ऐसे मामलों की सुनवाई के लिए विशेष न्यायालय या फास्ट-टÓेक कोर्ट होने चाहिए, जहां प्रतिदिन की सुनवाई हो और पीडित पक्ष व गवाहों को पूरी सुरक्षा उपलब्ध कराई जाए।

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