नयी दिल्ली. देश के वन क्षेत्र में बढ़ोतरी के साथ वन्य पशुओं खासकर बाघ जैसे संरक्षित जानवरों की संख्या में इजाफे के उत्साहजनक परिणामों के बीच हिंसक वन्य जीवों और मनुष्यों के संघर्ष में बढ़ोतरी ने सरकार की चिंता बढ़ा दी है। वन, पर्यावरण एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक देश के वनक्षेत्र में लगभग एक प्रतिशत की बढ़ोतरी के साथ ही इंसानी के साथ टकराव की जद में रहने वाले बाघ और हाथियों की संख्या में भी इजाफा हुआ है। इस संदर्भ में मंत्रालय से संबद्ध संसद की स्थायी समिति की रिपोर्ट में मानव एवं वन्यजीव संघर्ष में वृद्धि के कारण हाथी, बाघ एवं तेंदुये जैसे हिंसक जानवरों के हमलों में मरने वालों के आंकड़ों पर भी चिंता जतायी गयी है।

भारत में वनों की स्थिति पर मंत्रालय द्वारा गत 12 फरवरी को जारी वन सर्वेक्षण रिपोर्ट के मुताबिक पिछले दो सालों में देश के वनक्षेत्र में 8021 वर्ग किमी की वृद्धि हुयी है। साल 2015 की तुलना में यह बढ़ोतरी एक प्रतिशत से ज्यादा है। वनक्षेत्र की इस वृद्धि में हिंसक वन्यजीवों के लिये मुफीद घने वनों की बढ़ोतरी 1.36 प्रतिशत दर्ज की गयी है। उल्लेखनीय है कि बाघों की साल 2014 हुई गणना के मुताबिक इनकी संख्या पिछली गणना की तुलना में 1706 से बढ़कर 2226 थी। इस साल हो रही गणना में यह संख्या बढकर तीन हजार का आंकड़ा पार कर जाने की उम्मीद है। देश में जंगली हाथियों की संख्या तीस हजार से अधिक है।

वनाच्छादित क्षेत्र के विस्तार और वन्यजीवों की संख्या में बढ़ोतरी के समानांतर मंत्रालय के आंकड़े बताते हैं कि हिंसक पशुओं के हमलों में मृतकों की संख्या भी बढ़ी है। मंत्रालय द्वारा पिछले साल अगस्त में जारी आंकड़ों के मुताबिक अप्रैल 2014 से पिछले साल मई तक हिंसक पशुओं के हमलों में 1144 जानें जा चुकी हैं। इनमें 1052 मौतें हाथियों के हमलों में हुईं। मानव वन्यजीव संघर्ष के कारण साल 2014-15 में 426 मौतें हुईं जबकि इसके अगले साल 446 लोग हिंसक जनवारों के शिकार हुये। इतना ही नहीं पिछले साल देश भर में हाथियों के हमले में 259 लोग जबकि 27 लोग बाघ के हमले मारे गये। इन आंकड़ों के मद्देनजर मंत्रालय संबंधी संसद की स्थायी समिति ने समस्या के कारणों पर विचार कर इसके समाधान के उपाय सुझाये हैं।

कांग्रेस के राज्यसभा सदस्य आनंद शर्मा की अध्यक्षता वाली समिति ने उच्च सदन में पिछले सप्ताह पेश रिपोर्ट में आबादी क्षेत्रों में वन्यजीवों के प्रवेश की बढ़ती घटनाओं के पीछे वनक्षेत्र की सघनता के मुताबिक वन्यजीवों की आबादी में असंतुलन को मुख्य वजह बताया है। समिति का मानना है कि हिंसक पशुओं को अधिक संख्या में रखने की क्षमता वाले वनक्षेत्रों में इन जानवरों की संख्या कम है जबकि कम क्षमता वाले वन क्षेत्रों में क्षमता से काफी अधिक पशु रहने को मजबूर है। जिससे मनुष्य एवं कृषि संपदा को नुकसान पहुंचाने वाले बाघ, हाथी और नीलगाय जैसे जानवर वनक्षेत्र के तटीय इलाकों के आबादी क्षेत्रों में घुस जाते हैं। इसके अलावा समिति ने यह भी पाया है कि हिंसक जानवरों के हमले उन इलाकों में बढ़े हैं जिनमें पिछले दो सालों में वनक्षेत्र कम हुआ है।

इसके मद्देनजर समिति ने हिंसक वन्यजीवों के पर्यावास का संतुलन बनाये रखते हुये सरकार को इन्हें इजाफे वाले सघन वनक्षेत्रों में स्थानांतरित करने का सुझाव दिया है। हिंसक जानवरों के हमलों को रोकने के लिये सरकार के जारी प्रयासों को नाकाफी बताते हुये समिति ने वन्य जीवों के सघन वनक्षेत्रों में स्थानांतरण की समुचित कार्ययोजना बना कर इसके कार्यान्वयन की सिफारिश की है। समिति ने कहा कि वन्य जीव अपने प्राकृतिक पर्यावास की तरफ स्वयं रुख करते हैं, लेकिन एक जंगल से दूसरे जंगल तक पलायन के दौरान वन्य जीवों का आबादी क्षेत्रों में पहुंचना स्वाभाविक है। मानव एवं वन्यजीवों के बीच संघर्ष का यही मूल कारण है। समिति ने इसे रोकने के लिये मंत्रालय से वन्यजीवों के वैकल्पिक पुनर्वास का वैज्ञानिक अध्ययन कर इसकी समुचित कार्ययोजना बनाकर इसे लागू करने को कहा है। समिति ने नीलगाय, जंगली हाथी और सुअरों से फसलों को होने वाले नुकसान रोकने के लिये कटीले तार लगाने के पारंपरिक उपायों से आगे जाकर सौर ऊर्जा चालित बिजली की बाड़ लगाने, कैक्टस जैसे कटीले पौधों के प्रयोग से जैव बाड़ों का इस्तेताल करने और वनक्षेत्रों में पशुओं के लिये भोजन पानी की उपलब्धता बढ़ाने के अतिरिक्त उपाय करने की सिफारिश की है। जिससे पशु पानी और भोजन की तलाश में आबादी क्षेत्र में आने से बचें।

समिति ने बाघ संरक्षण उपायों के कारण देश में बाघों की संख्या में बढ़ोतरी पर खुशी जताते हुये इनकी आबादी के असंतुलन को दूर करने का मंत्रालय को सुझाव दिया है। समिति ने कहा कि कुछ वन क्षेत्रों में बाघों की संख्या जरूरत से अधिक हैं, तो कहीं कम है। समिति ने कान्हा या कार्बेट राष्ट्रीय उद्यान में क्षमता से अधिक बाघों की संख्या को सीमित करने के लिये बाघो की कमी वाले उड़ीसा के सिम्पलिपाल या सतकोसिया राष्ट्रीय उद्यान क्षेत्र में भेजने की सिफारिश की है। इसमें कहा गया है कि सिम्पलिपाल उद्यान में 100 से अधिक बाघ रखने की क्षमता है जबकि वहां अभी सिर्फ 20 बाघ मौजूद हैं। ऐसे में कान्हा या कार्बेट उद्यान से इन उद्यानों में बाघों को भेजा जा सकता है।

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