– बाल मुकुन्द ओझा
अंतर्राष्ट्रीय बाजार में पिछले महीनों में कच्चे तेल की कीमतों में गिरावट का फायदा आम जनता तक नहीं पहुंच रहा है। कुछ समय से कच्चे तेल की कीमतों में बड़ा उतार-चढ़ाव देखने को मिल रहा है। कच्चे तेल की कीमतों में गिरावट देखी गई है। इस दौरान ब्रेंट क्रूड ऑयल के प्राइस गिरकर 79.04 डॉलर प्रति बैरल पर पहुंच गए हैं। वहीं डब्ल्यूटीआई क्रूड ऑयल की बात करें तो यह गिरकर 74.29 डॉलर प्रति बैरल पर आ गया है। दिसंबर में भारत का कच्चे तेल के आयात का औसत मूल्य 77.79 डॉलर प्रति बैरल रहा है। यह नवंबर में 87.55 डॉलर प्रति बैरल और अक्टूबर में 91.70 डॉलर प्रति बैरल था। ओपेक देशों की तरफ से किये निर्णय का असर यह हुआ कि रेकार्ड लेवल तक गिरने वाला क्रूड बढ़कर एक समय 100 डॉलर के करीब पहुंच गया था। लेकिन देश में पेट्रोल-डीजल की कीमतों में कोई बदलाव देखने को नहीं मिल रहा है। कच्चे तेल की कीमतों में हो रही गिरावट का असर भारत पर देखने को नहीं मिल रहा है। 22 मई के बाद से पेट्रोल और डीजल की कीमतों में कोई बदलव नहीं हुआ है। सितंबर 2022 तक रूस अपने तेल को ब्रेंट क्रूड के मुकाबले 20 डॉलर प्रति बैरल सस्ता बेच रहा था। पिछले छह महीने में भारत सस्ते रूसी तेल का बड़ा खरीदार बनकर उभर रहा है। लेकिन 60 डॉलर के प्राइस कैप लगने के बाद भारत को आने वाले दिनों में नुकसान उठाना पकड़ सकता है। फिलहाल भारत को रूस की ओर से तेल छूट पर मिल रही है। हालांकि, भारत के लिए फिलहाल किसी तरह की मुश्किल बढ़ती हुई नजर नहीं आ रही है। क्योंकि मौजूदा समय में 60 से 70 डॉलर प्रति बैरल की दर से ही रूस से ही रूस से तेल खरीद रहा है। कच्चे तेल की कीमतें जुलाई, 2008 के बाद इस साल मार्च में 140 डॉलर प्रति बैरल पहुंच गई थीं। उसके बाद से 46 फीसदी गिरावट के साथ यह इस साल सबसे निचले स्तर 76 डॉलर प्रति बैरल के करीब कारोबार कर रहा है। कच्चे तेल को लीटर और रुपये के हिसाब से अनुमान लगाएं तो कीमत 9 महीने में 33 रुपये प्रति लीटर से ज्यादा घटनी चाहिए। इसके बाद भी देश में पेट्रोल और डीजल की कीमतों में गिरावट देखने को नहीं मिली है। अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल का भाव 10 महीने के न्यूनतम स्तर पर लुढ़क गया है। तेल कंपनियों ने लंबे समय तक दाम स्थिर रखे हैं, जिसकी वजह से इन्हें भारी घाटा भी हुआ है। लेकिन अब पेट्रोल-डीजल की बिक्री पर हो रहे फायदे का कुछ हिस्सा जनता को देने की चर्चा हो रही है। तेल कंपनियों ने बुधवार 28 दिसंबर को भी पेट्रोल-डीजल की कीमतें स्थिर रखी हैं। इस तरह आज लगातार 216वां दिन है जब देश में पेट्रोल और डीजल के दाम में कोई बदलाव नहीं किया गया है। पेट्रोल का भाव देश के कई स्थानों पर 110 रूपये प्रति लीटर को पार कर गया है।

हालांकि इससे देश की अर्थव्यवस्था में व्यापक सुधार के लक्षण परिलक्षित हुए हैं। आज की स्थिति की निष्पक्ष होकर समीक्षा करें तो सरकार मालामाल हो रही है और जनता कंगाल। आम उपभोक्ता आज भी महंगाई की बेरहम मार से पीड़ित होकर कराहने पर मजबूर है। सब्जी से लेकर दाल तक के भाव आसमान पर हैं और जनता धरती पर। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के लिए यह अवधि सुकून भरी है। पैट्रोल-डीजल की कीमतें हाहाकार की स्थिति से नीचे आकर धीरे-धीरे आम आदमी की पकड़ में आने लगी हैं। मगर कीमतों में गिरावट का पूरा फायदा सरकार आम जनता को नहीं दे रही है। इसमें सरकार के अपने तर्क वाजिब हो सकते हैं मगर जनता अपने अच्छे दिनों का इन्तजार कर रही है। जनता चाहती है कि तेल के भावों में गिरावट का उसे पूरा फायदा मिलना ही चाहिये। इस समय विश्व की अर्थव्यवस्था की मजबूत धुरी तेल ही है। विभिन्न देशों की सरकारों की राजस्व प्राप्ति का एक बड़ा हिस्सा पैट्रोलियम पदार्थों से हासिल होता है। सरकार का कहना है कि जब तेल की कीमतें आसमान को छूने लगती हैं तब जनता को राहत प्रदान करने के लिए सरकार पर्याप्त मात्रा में अनुदान देती है जिसका फायदा जनता तक पहुंचता है। आज जब कीमतें गिर रही हैं तो सरकार को उत्पाद कर वसूलने का पूरा अधिकार है। सरकार का यह कथन पूरी तरह उचित नहीं ठहराया जा सकता लोकतांत्रिक व्यवस्था में पहला हित जनता का संरक्षित होना है। सरकार का यह दायित्व है कि वह अपनी जनता को विभिन्न रियायतें उपलब्ध कराकर लाभान्वित करे।

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