दिल्ली। भारतीय पुरुष जूनियर हॉकी टीम ने बेल्जियम को हराकर पन्द्रह साल बाद जूनियर वल्र्ड कप हॉकी का टूर्नामेंट जीता। इस जीत में खिलाडियों ने जहां उम्दा खेल का प्रदर्शन किया है। वहीं पर्दे के पीछे रहते हुए एक शख्स ऐसा भी था, जिसने इस पूरी टीम को एकजुट रखा और बेहतरीन खेल को संवारते रहे। यह कोई नहीं हॉकी टीम के कोच हरेंद्र सिंह है। बॉलीवुड फिल्म चक दे इंडिया के कोच कबीर खान (अभिनेता शाहरुख खान) के सपने की तरह हरेन्द्र सिंह ने वैसा ही सपना देखा और उसे हकीकत में बदला भी। बेल्जियम से फाइनल मैच जीतने के बाद कोच हरेंद्र सिंह का भी सपना पूरा हो गया। 11 बरस पहले रोटरडम में भारत को कांसे का तमगा नहीं जीत पाने की टीस उनके दिल में नासूर की तरह घर कर गई थी और अपनी सरजमीं पर घरेलू दर्शकों के सामने इस जख्म को भरने के बाद कोच हरेंद्र सिंह अपने आंसुओं पर काबू नहीं रख सके। अपने 16 साल के कोचिंग करियर में अपने जुनून और जज्बे के लिए मशहूर रहे हरेंद्र ने दो साल पहले जब फि र जूनियर टीम की कमान संभाली, तभी से इस खिताब की तैयारी में जुट गए थे। चक दे इंडिया फिल्म की तर्ज पर कोच हरेंद्र ने खिलाडिय़ों में आत्मविश्वास और हार नहीं मानने का जज्बा भरा, लेकिन सबसे बड़ी उपलब्धि रही कि उन्होंने युवा टीम को व्यक्तिगत प्रदर्शन के दायरे से निकालकर एक टीम के रूप में जीतना सिखाया। harinder-singhभारत के फ ाइनल में प्रवेश के बाद जब उनसे इस बारे में पूछा गया था, तो उन्होंने कहा था, यह मेरे अपने जख्म हैं और मैं टीम के साथ इसे नहीं बांटता। मैंने खिलाडिडय़ों को इतना ही कहा कि हमें पदक जीतना है। रंग आप तय कर लो। रोटरडम में मिले हार के जख्म मैं एक पल के लिए भी भूल नहीं सका था। रोटरडम में कांस्य पदक के मुकाबले में स्पेन ने भारत को पेनल्टी शूट आउट में हराया था। भारतीय खिलाडिय़ों ने अपने कोच हरेंद्र सिंह व आल्टमंस के साथ जो रणनीति तैयार की थी, उसी के सहारे यह सफ लता मिली। भारत ने बेल्जियम के खिलाडिय़ों के पास ज्यादा गेंद ही नहीं जाने की। तेज, लम्बे पास और गोरिल्लों की तरह हमले बोलने वाले बेल्जियम के खिलाडिय़ों को भारत ने मौका ही नहीं दिया। जीत के बाद हरेंद्र ने कहा, मैंने अपने आप से कहा कि हो सकता है मैं एक ओलंपियन नहीं बन सकता लेकिन मैं ओलंपियंस और वल्?र्ड चैंपियंस तैयार करूंगा जिन पर देश गर्व करेगा। मैंने वल्?र्ड कप में कभी तिरंगे को फ हराते हुए नहीं देखा। इस बार मैं यह देखना चाहता था। मैंने अपनी जिंदगी के 22 साल भारतीय टीम को वल्?र्ड कप उठाते हुए देखने में लगा दिए। जूनियर वल्?र्ड कप जीतने वाली टीम के खिलाडिय़ों ने कड़ी मेहनत की। टीम के सैकंड गोलकीपर कृष्?ण पाठक अपने पिता के अंतिम संस्?कार में शामिल नहीं हो पाए। इस टीम ने पिछले साल जूनियर एशिया कप जीता भी जीता था। इसी साल स्?पेन में चार देशों का टूनार्मेंट भी अपने नाम किया था।

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