जयपुर. राजस्थान में जमीनों की खरीद-फरोख्त के एग्रीमेंट, लेने-देन और अन्य सिविल मामलों में लाखों-करोड़ों के कैश ट्रांजैक्शन को लेकर हाईकोर्ट ने जवाब मांगा है। जस्टिस समीर जैन की कोर्ट ने शंकरलाल खंडेलवाल और अन्य की याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए राज्य, केंद्र सरकार, इनकम टैक्स, ईडी और पुलिस से जवाब-तलब किया है। कोर्ट ने मौखिक टिप्पणी करते हुए कहा- इस तरह का कैश ट्रांजैक्शन प्रदेश में कालेधन को बढ़ावा देता है। इनकम टैक्स एक्ट-1961 के तहत 20 हजार से ज्यादा का कैश ट्रांजैक्शन नहीं हो सकता है, विशेष परिस्थितियों में डिक्लेरेशन के साथ 2 लाख रुपए के कैश ट्रांजैक्शन की अनुमति है। इसके बाद भी जमीन, फ्लैट के खरीद-बेचान, आपसी लेन-देन सहित अन्य मामलों में स्टांप (बिना रजिस्ट्रेशन) पर लिखकर लाखों-करोड़ों का कैश ट्रांजैक्शन होना स्वीकार किया जाता है। वहीं, अगर दोनों पार्टियों के बीच कोई विवाद हो जाता है तो पुलिस उस स्टांप पर लिखे समझौते के आधार पर मामला दर्ज करके जांच शुरू कर देती है। कोर्ट ने कहा- इस तरह के मामलों में करोड़ों की डील अनरजिस्टर्ड एग्रीमेंट के तहत की जाती है। एग्रीमेंट को इंडियन स्टाम्प्स एक्ट-1899, राजस्थान स्टाम्प्स एक्ट-1998 के तहत से रजिस्टर्ड कराना जरूरी होता है। एग्रीमेंट रजिस्टर्ड नहीं होने पर सरकार को भी राजस्व का नुकसान हो रहा है। अगर किसी भी एग्रीमेंट को रजिस्टर्ड कराया जाता है तो सरकार को तो राजस्व मिलेगा ही। वहीं, उस एग्रीमेंट के तहत जो लेन-देन हो रहा है। उसकी जानकारी भी संबंधित एजेंसी तक पहुंचेगी। इससे एजेंसी ट्रांजैक्शन पर नजर रख पाएगी, लेकिन अभी यह पता ही नहीं चल रहा है कि इतनी बड़ी रकम कहां से आई, इसका सोर्स क्या है? मामले से जुड़े वकील मनीष गुप्ता ने बताया- हाईकोर्ट में इस तरह के सिविल नेचर में पुलिस की ओर से दर्ज एफआईआर को रद्द कराने के लिए कई याचिकाएं लगी थी। इन पर सुनवाई के दौरान कोर्ट ने यह नोटिस किया कि प्रदेश में बड़ी संख्या में इस तरह के मामलों में कैश ट्रांजैक्शन हो रहा है, जिस पर किसी भी तरह की कार्रवाई नहीं हो रही है। याचिकाकर्ता के मामले में उसका दूसरे पक्ष से करोड़ों का लेन-देन हुआ था। दोनों पक्षों के बीच उसका एग्रीमेंट हुआ। विवाद होने पर दूसरे पक्ष ने पहले पक्ष के खिलाफ एफआईआर दर्ज करा दी। पुलिस ने मामले में जांच के बाद उस पर एफआर लगा दी। मजिस्ट्रेट कोर्ट ने मामले में फिर से जांच के आदेश दे दिए। इसके खिलाफ हम हाईकोर्ट आए थे। कोर्ट में इसी तरह की कई याचिकाएं लगी थी। कोर्ट ने यह नोटिस किया कि इस तरह के मामलों में पुलिस एक पक्ष के खिलाफ एफआईआर दर्ज करके जांच शुरू कर देती है। पुलिस यह नहीं देखती है कि यह अनरजिस्टर्ड एग्रीमेंट है। इसे स्वीकार नहीं किया जा सकता। वहीं, जिस लेन-देन का विवाद है, उसमें लाखों-करोड़ों का कैश ट्रांजैक्शन हुआ है। इतनी बड़ी रकम कहां से आई, उसका सोर्स क्या है? वहीं, पुलिस संबंधित एजेंसियों को भी इंफोर्म नहीं करती है। ऐसे में कोर्ट ने जयपुर पुलिस कमिश्नर, सीकर, दौसा सहित 9 जिलों के एसपी को बुलाया था। कोर्ट ने पुलिस, इनकम टैक्स, ईडी सहित अन्य एजेंसियों को यह बताने के लिए कहा है कि उन्होंने अब तक इस तरह के कैश ट्रांजैक्शन के खिलाफ क्या कार्रवाई की है?






























