Vasant Panchami

मथुरा : रंगों का त्यौहार प्रेम और समर्पण के प्रतीक राधा और कृष्ण की धरती ब्रज में आज (वसंत पंचमी) से शुरु होकर होली के 10 बाद तक चलेगा। इतना ही नहीं, उसके बाद भी गांव-देहात के किसी घर में शादी के लिए रजामंद न होने पर भी वर वधु पक्ष को होली खेलनी पड़ती है।  प्राचीन परम्पराओं के अनुसार आज वसंत पंचमी के अवसर पर ब्रज के सभी मंदिरों में पूजा-अर्चना के पश्चात ठाकुर जी को गुलाल अर्पण किया गया और फिर प्रसाद के रूप में सभी भक्तों पर गुलाल की वर्षा की गई। बरसाना की लठमार होली ब्रज की 50 दिन की होली का मुख्य आकर्षण होती है।

सरकारी सूत्रों के अनुसार मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ अपने सहयोगियों के साथ यहां 23 फरवरी को पहुंचेंगे और 24 फरवरी को लठमार होली संपन्न होने के बाद ही लखनऊ वापस जायेंगे। विश्वप्रसिद्ध लठमार होली से पूर्व भी एक ऐसी होली होती है जिसकी एक झलक पाने के लिए कुछ ही मिनटों में 600 फीट ऊॅचे ब्रह्मांचल पर्वत पर स्थित ठा. लाड़िली जी (राधारानी) के मंदिर में पहुंच जाते हैं। नंदबाबा मंदिर के सेवायत बिजेंद्र शरण गोस्वामी एवं नवल किशोर गोस्वामी बताते हैं, ‘दरअसल, यह वह मौका होता है जब नन्दगांव का एक हुरियार (पण्डा) बरसाना की गोपियों का होली खेलने का न्यौता मंजूर कर लिए जाने की सूचना देने लाडिली जी के मंदिर में पहुंचते है। तब उसकी आवभगत में न केवल उसे भरपेट लड्डू-मिठाई खिलाए जाते हैं, बल्कि उस पर बरसाए भी जाते हैं।

इसलिए इस घटना को ‘लड्डू होली’ अथवा ‘पाण्डे लीला’ भी कहा जाता है।’ श्रीकृष्ण जन्मस्थान सेवा संस्थान के सचिव कपिल शर्मा ने बताया, ‘इस वर्ष ब्रज की होली का बडे़ पैमाने पर प्रचार-प्रसार किया जा रहा है। इसलिए देशी-विदेशी मेहमानों में वृद्धि को देखते हुए रंगभरनी एकादशी के अवसर पर जन्मस्थान के लीलामंच प्रांगण में मनाया जाने वाला होलिकोत्सव पहले से भी अधिक भव्य एवं दिव्य तरीके का होगा।’ बिहारीजी के सेवायत आशीष गोस्वामी के अनुसार फाल्गुन शुक्ल एकादशी पर वृन्दावन में ठा. बांकेबिहारी मंदिर सहित सभी मंदिरों में गुलाल के स्थान पर ठाकुरजी को टेसू के फूलों से बने रंग के छींटे देकर ब्रज में गीले रंगों की होली की शुरु कर दी जाती है।

यही रंग प्रसाद रूप में भक्तजनों पर भी छिड़का जाता है। इसी दिन वृन्दावन में ठा. राधारमण लाल जी का डोला निकाला जाता है। ब्रज में होली का आयोजन एक सामूहिक नृत्य का रूप में ले लेती है, जिसे यहां ‘चरकुला नृत्य’ के नाम से जाना जाता है, थुरा के ऊमरी, रामपुर, सौंख आदि कई गांवों में होली के बाद चरकुला नृत्य और उसकी प्रतियोगिताएं आयोजित की जाती हैं। इस प्रकार ब्रज में होली का त्यौहार करीबन दो महीने तक चलता है।

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