जयपुर। भारत के महानतम वैज्ञानिक, परमाणु बम व दूसरे महत्वपूर्ण आयुधों के आविष्कार दिवगंत राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम की आज (पन्द्रह अक्टूबर) को जयंती है। जयंती पर पूरा देश कलाम की सादगी और उच्च विचारों को ना केवल याद कर रहा है, बल्कि उनके देश को दिए योगदान को याद करके उन्हें श्रद्धांजलि दे रहा है। राष्ट्रपति जैसे संवैधानिक पद पर होने के बावजूद कलाम ने आम जन के बीच रहकर ऐसी अमिट छाप छोड़ी है, हर कोई उनका कायल रहा। चाहे बच्चे हो या बड़े, हर कोई उन्हें पसंद करता था। वे भी बिना ताम-झाम के लोगों से घुल-मिल जाते थे।
कलाम न तो वैज्ञानिक के खाँचे में फि ट होते थे और न ही राजनेता के साँचे में। वो जो थे उसे ही विलक्षण कहा जाता है। कोई नहीं दिखता जिससे आप कलाम की तुलना कर सकें। 1960 के दशक में मवेशियों के तबेले में लैब बनाने और साइकिल पर रॉकेट ढोने वाले शख्स की ही विरासत है कि भारत नासा से सैकड़ों गुना सस्ते मंगल अभियान पर गर्व कर रहा है। तमिलनाडु के तटवर्ती गाँव में मछुआरों को किराये पर नाव देने वाले ज़ैनउलआब्दीन का बेटा जो पूरी तरह देसी सरकारी शिक्षण संस्थानों में पढ़ा। उसने पश्चिम का तकनीकी ज्ञान अपनाया मगर उसका जीवन दर्शन पूरी तरह भारतीय रहा।
गीता पढऩे, रूद्रवीणा बजाने और कविताएं लिखने वाले शाकाहारी कलाम अपना ज्यादा समय लाइब्रेरी में बिताते थे या फि र छात्रों के साथ पारिवारिक झमेलों से दूर उनका जीवन पौराणिक काल के किसी संत गुरू जैसा था लेकिन सुखोई उड़ाना और सियाचिन जाना उसमें एक अलग आयाम जोड़ता था। कलाम को पूजने की हद तक चाहने वालों में मिसाइल और परमाणु बम की विनाशक ताकत पर गर्वोंन्मत होने वाले लोग बहुत हैं लेकिन कलाम को मिसाइलमैन कहना उतना ही अटपटा है, जितना बालों की वजह से उन्हें रॉक स्टार कहना। कलाम को विक्रम साराभाई और सतीश धवन जैसे वैज्ञानिकों ने थुंबा के अंतरिक्ष रिसर्च सेंटर में काम करने के लिए चुना था, जहाँ कलाम ने अंतरिक्ष तक उपग्रह ले जाने वाले देसी रॉकेट विकसित करने वाली टीम की अगुआई की। यही संस्थान 1971 में साराभाई के निधन के बाद विक्रम साराभाई स्पेस सेंटर बन गया, जहाँ कलाम ने अपने वैज्ञानिक जीवन के 22 साल रॉकेट साइंस को भारत के लिए संभव बनाने में लगाए।
उन्होंने उस सेटेलाइट लॉन्च व्हीकेल यानी एसएलवी का पुर्जा-पुर्जा जाँचा-परखा, जिसके कामयाब होने के बाद भारत एलीट स्पेस क्लब का मेंबर बन गया। ये सिलसिला यहाँ तक पहुँचा है कि उन्नत कहे जाने वाले देशों के सेटेलाइट भारतीय एसएलवी के ज़रिए अंतरिक्ष में भेजे जा रहे हैं।
कलाम पूरे देश में घूम-घूम कर कहीं रतनजोत की खेती करने तो कहीं सेटेलाइट डेटा से मछुआरों की मदद करने की सलाह देते रहे।
2002 में जब राष्ट्रपति पद के लिए कलाम का नाम प्रस्तावित किया गया तो विपक्षी कांग्रेस ने उनके खिलाफ उम्मीदवार खड़ा न करने का फ़ ैसला किया। सिर्फ वामपंथी दलों ने आज़ाद हिंद फ ़ौज में शामिल रहीं कैप्टन लक्ष्मी सहगल को मैदान में उतारा और ये एकतरफ़ा चुनाव कलाम आसानी से जीत गए। 2002 में कलाम का नाम प्रस्तावित किया जाना एक संयोग नहीं था। तब गुजरात के भीषण दंगों की लपटें ठीक से बुझी भी नहीं थीं। ऐसे में कलाम को उम्मीदवार बनाने को कुछ लोगों ने मुसलमानों के लिए मरहम और कुछ ने भाजपा के सियासी दांव की तरह देखा। संघ के लोग इसलिए खुश थे कि कलाम गीता पढ़ते हैं। कांग्रेस और समाजवादी पार्टी एक मुसलमान का विरोध नहीं कर सकती थीं। एक ऐसा आदर्श मुसलमान, जिसने देश को ताकतवर बनाया और जिसकी देशभक्ति पर शुबहे की गुंजाइश नहीं थी।
कलाम के जाने के दुख में पूरा देश एक साथ दिखा। हिंदू-मुसलमान सब दुखी दिखे। कलाम ने सिखाया अच्छे रहकर बड़ा बनना और बड़े हो जाने पर अच्छा बने रहना। कलाम जिस तरह राष्ट्रपति पद से बड़े थे वैसे ही उनके जाने का दुख भी राष्ट्रीय शोक से ज्यादा गहरा रहा। आशंकाएं जताई गईं कि वे राजनीतिक तौर पर नासमझ साबित होंगे। दूसरे राष्ट्रपतियों के मुक़ाबले उनका कार्यकाल साफ-सुथरा रहा। कलाम उन राष्ट्रपतियों में थे, जिन्होंने पद की नई परिभाषा गढ़ी। अपने सर्वोच्च आसन का भरपूर आनंद लेकर काम करते हुए दिखते थे कलाम। दूसरे कार्यकाल की एक दबी सी इच्छा शायद उनके मन में थी लेकिन जब उन्हें अंदाज़ा हुआ कि यूपीए सरकार की मंशा कुछ और है तो वे गरिमा के साथ किनारे हो गए।
कलाम ने अपनी जीवनी विंग्स ऑफ़ फ ़ायर में लिखा है कि दो चीज़ें उनमें जोश भरती हैं। विज्ञान और उसे सीखने की चाह रखने वालों का साथ।
उन्होंने जितने बड़े पैमाने पर देश के विज्ञान के छात्रों से मुलाक़ात और बात की है। कभी उनके कैम्पस में जाकर कभी उन्हें राष्ट्रपति भवन बुलाकर तो कभी स्काइप के ज़रिए वह गिनीज़ बुक ऑफ़ वल्र्ड रिकॉड्र्स में दर्ज होने लायक है। जीवन की अंतिम साँसें लेने से ऐन पहले वे शिलांग में छात्रों से ही बात कर रहे थे। वे ख़ुद भी शायद ऐसी ही मौत चाहते होंगे। तभी तो छात्रों को पढ़ाते हुए उनके सीने में दर्द उठा और वे हम सभी को छोड़कर चले गए। आज उनकी जयंती है। हर भारतीय का मन उनकी सादगी, उच्च विचार और देश को दिए गए योगदान को याद करके गौरवांवित हो उठता है। यहीं कलाम को सच्ची श्रद्धांजलि भी है।

— बीबीसी हिन्दी का आभार

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