-बाल मुकुन्द ओझा
युवा राष्ट्र की रीढ़ होते हैं। युवा नेतृत्व से राजनीति की दशा और दिशा बदल सकती है। विषम परिस्थितियों
में निर्णय लेने की क्षमता युवा वर्ग की पहचान कराती है। युवा किसी भी देश और समाज में बदलाव के
मुख्य वाहक होते हैं। युवा वर्ग करप्शन फ्री इंडिया चाहता है। आज सम्पूर्ण देश भ्रष्टाचार से आहत है। युवा
ही देश को भ्रष्टाचार से मुक्ति की राह दिखा सकता है। ऐसे में देश में युवा नेतृत्व की मांग बढ़ी है।
युवा नेतृत्व को लेकर आज देशभर में व्यापक बहस छिड़ी है। युवा आबादी ही देश की तरक्की को रफ्तार
प्रदान कर सकती है। भारत विश्व में सब से अधिक युवा आबादी वाला देश है। हमारे यहां 139 करोड़ की
जनसंख्या में 65 प्रतिशत युवा हैं। लेकिन देश के सियासी नेतृत्व की बागडोर 60 साल से ऊपर के नेताओं के
हाथों में है।
आजादी के आंदोलन में महात्मा गाँधी ने नेहरू, जेपी और लोहिया जैसे युवा नेतृत्व पर अपना भरोसा
व्यक्त किया था। आजादी के बाद भी कई दशकों तक राजनीतिक पार्टियों में युवा नेतृत्व का बोलबाला रहा।
कांग्रेस में चंद्र शेखर, मोहन धारिया जैसे युवा तुर्क के नाम से जाने जाते थे। जनसंघ में अटल बिहारी
वाजपेयी, कम्युनिष्ट पार्टी में नम्बूदरीपाद, स्वतंत्र पार्टी में पीलू मोदी, गायत्री देवी और सोशलिस्ट पार्टी में
जॉर्ज फर्नांडिस जैसे लोग युवाओं का प्रतिनिधित्व करते थे। मगर धीरे धीरे सियासत से युवा नेतृत्व गायब
होने लगा। भाजपा ने सत्ता प्राप्त होते ही अपने बुजुर्ग नेताओं को साइड लाइन कर दिया और अपेक्षाकृत
नरेंद्र मोदी सरीखे नेताओं को कमान सौंपी। कांग्रेस ने भी राहुल गाँधी जैसे युवा नेतृत्व को पार्टी कमान
सौंपने में अपनी भलाई समझी, हालाँकि राहुल बाद में पार्टी अध्यक्ष से हट गए और प्रियंका गाँधी वाड्रा ने
राजनीति में प्रवेश किया। युवा पार्टियों के लिए आक्सीजन का काम करते है जिनकी उपेक्षा किसी के लिए
भी भारी पड़ सकती है।
देशभर में अच्छे युवा और ऊर्जावान नेता होने के बाद भी कांग्रेस में बुजुर्ग नेताओं का बोलबाला है जिससे
युवा नेताओं में असंतोष तेजी से बढ़ रहा है। युवा नेतृत्व को बढ़ावा नहीं देने से कई राज्यों से कांग्रेस सिमट
गयी। आंध्र प्रदेश में जगनमोहन रेड्डी ने बगावत कर कांग्रेस को हासिये पर ला दिया। उन्होंने क्षेत्रीय पार्टी
का गठन कर प्रदेश में अपना प्रभुत्व कायम कर लिया। असम से हेमंत विश्व शर्मा ने कांग्रेस का त्याग कर
भाजपा ज्वाइन करली इसके साथ ही असम से भी कांग्रेस को अपना बोरिया बिस्तर समेटना पड़ा। इससे
पूर्व ममता बनर्जी और चंद्र शेखर राव सरीखे युवा नेता कांग्रेस से अलग हो चुके थे। इससे अनेक प्रदेशों में
कांग्रेस को युवा नेतृत्व की उपेक्षा भारी पड़ी। कांग्रेस ने इससे कोई सबक नहीं सीखा। मध्य प्रदेश से

ज्योतिरादित्य सिंधिया ने बगावत कर कांग्रेस को सत्ताच्युत कर दिया। राजस्थान में सचिन पायलट काफी
समय से असंतुष्ट चल रहे है। इससे पूर्व उत्तर प्रदेश में जतिन प्रसाद कांग्रेस छोड़कर भाजपा में जा चुके है।
मध्य प्रदेश और राजस्थान के बाद पंजाब कांग्रेस में संकट इस बात का सबूत है कि पार्टी में युवा और वरिष्ठ
नेताओं के बीच संघर्ष चरम पर है। कई नेता मानते हैं कि राहुल गांधी के अध्यक्ष पद से हटने के बाद इसमें
तेजी आई है। इस भांति कहा जा सकता है धीरे धीरे युवा नेतृत्व कांग्रेस से छिटकता जारहा है जिसका बड़ा
खामियाजा पार्टी को भुगतना पड़ेगा। हालाँकि राहुल गांधी ने कांग्रेस छोड़ने वाले नेताओं को डरपोक और
आरएसएस का आदमी करार दिया है। उन्होंने कहा कि बहुत लोग हैं जो डर नहीं रहे हैं, वे कांग्रेस के बाहर हैं,
वे सब हमारे हैं और उनको अंदर लाना चाहिए। जो हमारे यहां डर रहे हैं उन्हें बाहर निकालना चाहिए।
अब बात करते है अन्य पार्टियों में युवा नेतृत्व की। यूपी में अखिलेश यादव, तमिलनाडु में स्टालिन,
महाराष्ट्र में उद्धव ठाकरे, बिहार में तेजस्वी यादव सरीखे युवा नेताओं ने अपना नेतृत्व स्थापित कर अपनी
अपनी पार्टी को ऑक्सीजन प्रदान की है। भाजपा में युवा नेतृत्व को संगठन और सत्ता में भागीदारी दी जा
रही है। उत्तराखंड में पुष्कर सिंह धामी को मुख्यमंत्री बनाकर इसकी शुरुआत की जा चुकी है। भाजपा के लिए
आज ऊर्जावान और भरोसेमंद युवा नेतृत्व की पहचान कर लेना बहुत जरूरी हो गया है। मोदी-शाह युवा
जमात को तैयार करने में जुटे हैं। इनमें समृति ईरानी, अनुराग ठाकुर, तेजस्वी सूर्य, धर्मेंद्र प्रधान, किरेन
रिजिजू, ज्योतिरादित्य सिंधिया, सतीश पूनिया आदि शामिल है।

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