जयपुर। केंद्र में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार ने 26 मई को दो साल का कार्यकाल पूरा कर लिया है। नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन की जबरदस्त जीत के तीन मुख्य आधार रहे, समाज के सबसे निचले तबके का विकास, भ्रष्टाचार को जड़ से उखाडऩा व उद्योग-धंधों को पारदर्शी व सहज बनाना। भले ही इन तीनो मुद्दों पर सफ लता को लेकर लोगों की राय अलग-अलग हों, लेकिन इतना स्पष्ट है कि मोदी सरकार इन तीनों ही मोर्चों पर मजबूती के साथ आगे बढ़ रही है। वे दिन बीत गए, जब केंद्र सरकार प्रत्येक मोर्चे पर चारों तरफ से भ्रष्टाचार के आरोपों से घिरी रहती थी। स्पेक्ट्रम बेचने से लेकर राष्ट्रमंडल खेलों के आयोजन तक और हेलीकॉप्टर की खरीद से लेकर कोयला खदानों की नीलामी जैसे हरेक काम में यूपीए सरकार पर भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप लगे। लेकिन बीते दो वर्षों में हमें मूलभूत बदलाव देखने को मिले हैं। मोदी सरकार ने बेदाग प्रशासन दिया है और उसके ऊपर भ्रष्टाचार का एक भी आरोप नहीं लगा है। सिर्फ ट्विटर के जरिये विदेश में फं से भारतीयों को शीघ्रता से मदद मिलना हो या रेल में यात्रा कर रही लाचार मां के भूखे बच्चे के लिए दूध की व्यवस्था का होना या फि र सुदूर गांव में रहने वालों को गैस सिलेंडर उपलब्ध कराना, ऐसे अनगिनत उदाहरण मोदी सरकार की आम आदमी के प्रति जवाबदेही के जीते-जागते प्रमाण हैं। आर्थिक विकास को गति देने के लिए यूपीए सरकार से विरासत में मिली जर्जर अथज़्व्यवस्था को पुन: पटरी पर लाने का काम किया गया है। जब मोदी सरकार सत्ता में आई, तब देश की आर्थिक विकास दर तेजी से नीचे जा रही थी। वैश्विक आर्थिक मंदी के बावजूद मोदी सरकार के अथक प्रयासों का ही परिणाम है कि विकास दर में सुधार आया और वर्तमान वित्तीय वर्ष में इसके 7.5 प्रतिशत के ऊपर जाने की संभावना बनी है। नीतिगत सुधारों की वजह से निवेशकों का एक बार फि र से भारत पर विश्वास लौटा है, जबकि विपक्ष लगातार जीएसटी जैसे विधेयकों पर संसद में अवरोध पैदा कर रहा है। लेकिन इन सारे अवरोधों का सामना करते हुए सरकार ने न सिर्फ अर्थव्यवस्था को मजबूती दी है, बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत की छवि को पुनस्र्थापित भी किया है। जन-धन योजना, मुद्रा योजना, स्टैंडअप इंडिया, फ सल बीमा योजना, स्किल इंडिया और मेक-इन-इंडिया जैसे अनेक कार्यक्रमों ने आमजन के जीवन को छुआ है। जहां ग्राम ज्योति योजना से हर गांव को रोशन करने का काम तेजी से हो रहा है, वहीं वर्षों से भ्रष्टाचार झेल रहे राष्ट्रीय राजमार्गों को पटरी पर लाकर प्रतिदिन 18 किलोमीटर सड़कें बनाई जा रही हैं। विपक्ष सरकार पर रोजगार सृजन न कर पाने का आरोप लगाते समय भूल जाता है कि भारत का स्वरूप ऐसा है कि सरकारी नौकरी द्वारा बेरोजगारी नहीं दूर की जा सकती। इसीलिए प्रधानमंत्री मोदी ने स्टैंडअप इंडिया, मुद्रा योजना, स्किल इंडिया और मेक-इन-इंडिया जैसे कार्यक्रम बनाए। इनसे करोड़ों कुशल, अद्र्ध-कुशल और यहां तक कि दैनिक श्रमिकों को भी रोजगार के अवसर मिलने की संभावना बनी है। स्टैंडअप इंडिया के जरिये दलित, आदिवासी और महिलाओं जैसे उपेक्षित वर्ग को भी उद्यमी बनने का अवसर मिल रहा है। सरकार कैसे अपने काम के दायरे में आमजन को ला सकती है, इसका एक उदाहरण पेट्रोलियम व प्राकृतिक गैस मंत्रालय है। पहले इस मंत्रालय का अधिकांश काम कॉरपोरेट और बड़े वाणिज्यिक हितों तक सीमित था। लेकिन अब यह मंत्रालय पहल, ‘गिव इट अपÓ और उज्ज्वला जैसे कार्यक्रमों के जरिये जन-कल्याण का मंत्रालय बन गया है। केंद्र सरकार द्वारा दी जाने वाली सब्सिडी का एक बड़ा हिस्सा हमेशा से बिचौलियों व भ्रष्टाचारियों की झोली में जाता रहा है। इस पर लगाम कसने के लिए जन-धन योजना में खुले खातों का लाभ लेते हुए पेट्रोलियम मंत्रालय ने ‘पहलÓ योजना शुरू की। इस योजना के तहत सरकार ने एलपीजी ग्राहकों को बाजार कीमत पर गैस सिलेंडर उपलब्ध कराना शुरू किया और सब्सिडी का पैसा सीधे उनके बैंक खातों में जाने लगा। इससे एलपीजी पर मिलने वाली सब्सिडी की चोरी रुक गई। कमर्शियल क्षेत्र में सब्सिडी वाले एलपीजी सिलेंडरों की कालाबाजारी पर भी रोक लगी। अब तक 15 से 20 करोड़ परिवार पहल से जुड़ चुके हैं, जिनके बैंक खातों में 32,307 करोड़ रुपये की सब्सिडी सीधे जमा की गई है। पहल के चलते पिछले वित्त वर्ष में सरकार की 14,672 करोड़ रुपये की बचत हुई। पहल की सफ लता के बाद प्रधानमंत्री ने ‘गिव इट अपÓ योजना की घोषणा की, जिसके तहत उन्होंने लोगों से एलपीजी पर मिलने वाली सब्सिडी का स्वेच्छा से त्याग करने का आग्रह किया। यह प्रयास रंग लाया और अब तक एक करोड़ से भी अधिक परिवार अपनी एलपीजी सब्सिडी का त्याग कर चुके हैं, जिससे सरकारी खजाने में भारी बचत हुई है। संपन्न परिवारों के साथ-साथ ‘गिव इट अपÓ में मध्यवगीज़्य परिवारों की भी भारी भागीदारी रही। ‘गिव इट अपÓ की सफ लता जहां नरेंद्र मोदी को ऐसा अनूठा राष्ट्रनेता साबित करती है, जिनकी बात को देश का हर नागरिक गंभीरता से लेता है। पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री भी कुछ ऐसी ही शख्सियत थे, जिनके आह्वान पर लोगों ने एक पहर भूखे रहकर अनाज के संकट से लडऩे में देश की मदद की थी। पहल और ‘गिव इट अपÓ के तहत हुई बचत को भारत सरकार ने अपने खजाने में न रखकर गरीबों को रसोई गैस का लाभ पहुंचाने के लिए प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना की शुरुआत की है। इसके तहत 2019 तक गरीबी रेखा के नीचे रहने वाले पांच करोड़ परिवारों को मुफ्त गैस सिलेंडर देने का लक्ष्य रखा गया है। उत्तर प्रदेश के बलिया जिले से शुरू हुई उज्ज्वला योजना में पहले वर्ष में 2,000 करोड़ रुपये के अनुदान से करीब डेढ़ करोड़ परिवारों को लाभ मिलेगा। इस योजना के लिए सरकार ने 8,000 करोड़ रुपये आवंटित किए हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन की एक रिपोर्ट के अनुसार, साल 2012 में भारत में लगभग 12 लाख मौतें घरेलू प्रदूषण की वजह से हुईं। इस रिपोर्ट के अनुसार, फेफ ड़े, आंख व हृदय की बीमारियों के लिए घरेलू धुआं ही जिम्मेदार है। इस धुएं का गरीबों, खासकर महिलाओं और बच्चों पर होने वाला प्रभाव भयावह है। उज्ज्वला देश के गरीबों की स्वास्थ्य सुरक्षा के नजरिये से तो वरदान साबित होगी ही, साथ ही महिलाओं और बच्चों को जंगलों में लकडिय़ां और उपले चुनने से मुक्ति मिलने से उनकी सुरक्षा को भी बल मिलेगा। कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने गरीब कलावती के घर जाकर फ ोटो तो खिंचवाई, लेकिन शायद वह उन जैसी महिलाओं की संवेदना को समझ नहीं पाए, क्योंकि उन्होंने कभी रसोई के धुएं से निकले आंसुओं का दर्द नहीं महसूस किया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गरीबी निकट से देखी है और अभाव का जीवन जिया है। शायद यही कारण है कि उन्हें उज्ज्वला जैसा कार्यक्रम बनाने के लिए किसी कलावती के घर जाकर फ ोटो खिंचवाने की जरूरत नहीं पड़ी। किसी गरीब महिला को धुएं के आंसुओं से छुटकारा दिलाना, किसी गरीब को फेफ ड़े, आंख और दिल की बीमारी से बचाना ही शायद मोदी सरकार में आए अच्छे दिनों के संकेत हैं।
अमित शाह राष्ट्रीय अध्यक्ष, भाजपा
(ये लेखक के अपने विचार हैं)

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