नई दिल्ली। देश-दुनिया में पत्रकारिता का पेशा जोखिम भरा और जानलेवा होता जा रहा है। अपनी जान पर खेलकर पत्रकारिता कर रहे पत्रकारों पर जानलेवा हमले बढऩे लगे हैं। यहीं नहीं इस जोखिम भरे पेशे के बावजूद मीडिया प्रबंधन और सरकारें पत्रकारों की सुरक्षा और बेहतर जीवन के लिए ध्यान नहीं दे रहे हैं। दुनियाभर के तमाम पत्रकार मुश्किल और विपरीत परिस्थियों में भी सच्चाई को जनता तक ला रहे हैं। चाहे वह देश-दुनिया के भ्रष्ट राजनेताओं के कारनामे हो या सरकारी योजनाओं में व्याप्त भ्रष्टाचार। या फिर भ्रष्टतंत्र में शामिल राजनेताओं, सरकारों, प्रशासन, माफियाओं और अपराधियों के गठजोड़ से होने वाले अवांछित कार्य। इन सभी का पर्दाफाश करते हुए पत्रकार अपनी जान गंवा रहे हैं। पत्रकारों को लेकर यूनेस्को की एक रिपोर्ट में कुछ ऐसा ही चौंकाने वाला खुलासा हुआ है। दरअसल रिपोर्ट में बताया है कि प्रत्येक साढ़े चार दिनों में एक पत्रकार की हत्या कर दी जाती है। यूनेस्को के महासचिव की तरफ से जारी रिपोर्ट में बताया गया है कि पिछले दशक 827 पत्रकारों की उनकी नौकरी के दौरान हत्या कर दी गई। पत्रकारों की समस्या को लेकर सबसे ज्यादा प्रभावित सीरिया. यमन लीबिया जैसे अरब देश रहे हैं। अरब देशों के बाद लैटिन अमेरिका का नंबर आता है। भारत में भी पत्रकारों की स्थिति चिंताजनक बताई गई है। पत्रकारों की ज्यादातर मौतें ( 59 प्रतिशत)पिछले दो सालों में युद्ध प्रभावित क्षेत्रों में हुई है। रिपोर्ट के मुताबिक विदेशी पत्रकारों की अपेक्षा स्थानीय पत्रकारों पर मौत का खतरा ज्यादा मंडराता रहता है। आंकड़ों के अनुसार मारे गए पत्रकारों में 90 प्रतिशत स्थानीय पत्रकार थे। हालांकि 2014 में 17 विदेशी पत्रकार मारे गए जो कि औसतन पिछले वर्षों की तुलना में काफ ी अधिक था। रिपोर्ट में बताया है कि गृहयुद्ध, आतंक, आतंकी संगठनों, भ्रष्टाचार, संगठित माफिया के खिलाफ रिपोर्टिंग करते वक्त पत्रकारों पर जानलेवा हादसे हुए हैं। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि इन सबके बावजूद मीडिया प्रबंधन और सरकारें भी पत्रकारों की बेहतरी और सुरक्षा पर ध्यान नहीं देती है। इनके वेतन-भत्ते जहां दूसरे सेक्टरों के मुकाबले काफी कम है, वहीं जोखिम ज्यादा है और कार्य भी अधिक लिया जाता है।

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