सुप्रीम कोर्ट के देशभर के विशेष आर्थिक क्षेत्र (सेज) की खाली भूमि की रिपोर्ट तलब करने और सरकारों से जवाब मांगने से जयपुर महिन्द्रा वल्र्डसिटी से प्रभावित किसानों को उनकी कृषि भूमि वापस मिलने की आस बंधी। कंपनी दस्तावेज के मुताबिक, जयपुर महेन्द्रा सेज में भी चालीस फीसदी भूमि खाली पड़ी होने का अनुमान है। सुप्रीम कोर्ट के जवाब मांगने से जयपुर महेन्द्रा सेज में निवेशकों और खाली भूमि की वास्तविक स्थिति सामने आ सकेंगी, साथ ही राज्य सरकार द्वारा कंपनी पर की गई मेहरबानियों की सच्चाई सामने आ सकेंगी। सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के बाद आरटीआई से एकत्र दस्तावेज की पडताल में निवेश और निवेशकों को तरसते जयपुर महेन्द्रा सेज के बारे में जनप्रहरी एक्सप्रेस की ग्राउण्ड रिपोर्ट………..
– राकेश कुमार शर्मा
जयपुर। देश भर में विशेष आर्थिक क्षेत्र (सेज) के नाम पर किसानों से हजारों एकड़ कृषि भूमि अवाप्त करके कंपनियों को सौंप दी गई। इस उम्मीद के साथ बड़ी कंपनियों को उपजाऊ क्षेत्रों की कृषि भूमि दी गई कि वे निवेश लाएंगे और रोजगार उपलब्ध कराएंगे। लेकिन एक दशक बाद भी देश भर के अधिकांश सेज खाली पड़े हैं। ना तो निवेश और ना ही निवेशक आए, बल्कि सेज के नाम पर किसानों से उपजाऊ भूमि नाम-मात्र की डीलएसी दरों पर अवाप्त करके उन्हें बेघर कर दिया। तभी से अपनी जमीनों के लिए संघर्ष कर रहे सेज से पीडि़त किसानों की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने सख्त रवैया अपनाते हुए केन्द्र सरकार और सात राज्यों से सेज क्षेत्रों के बारे में जवाब मांगा है, साथ ही यह भी कहा है कि क्यों ना खाली पड़े सेज की भूमि को वापस लेकर उन्हें किसानों को दे दी जाए। सुप्रीम कोर्ट के इस नोटिस से सरकारों व कंपनियों में हडकंप मचा है, वहीं उन हजारों किसानों के चेहरे पर खुशी है कि डंडे के जोर पर उनसे अवाप्त की गई जमीनें वापस मिल सकेंगी। फिर से पड़त पड़ी भूमि फसलों से लहरा सकेंगी। देश के प्रमुख राज्यों में सेज के नाम पर किसानों की उपजाऊ जमीनों को लेने का खेल खूब चला था। इनमें राजस्थान भी था। जयपुर, जोधपुर समेत करीब आधा दर्जन जिलों में सेज की घोषणा करके जमीनें अवाप्त की गई थी। करीब एक दशक पहले तत्कालीन भाजपा सरकार के राज में जयपुर-अजमेर राजमार्ग पर करीब आधा दर्जन गांवों की करीब तीन हजार एकड़ कृषि भूमि अवाप्त करके डवलपर कंपनी महिन्द्रा जेस्को डवलपर्स लिमिटेड (जयपुर महिन्द्रा वल्र्डसिटी)को दी गई। तब मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे थी। इसके लिए रीको व महिन्द्रा लाइफ स्पेस डवलपर्स के बीच 25 जून, 06 को एक समझौता हुआ था। इसमें दो हजार एकड़ भूमि में सेज और डीटीए के तहत निवेशकों को भूमि दी जानी थी और शेष एक हजार एकड भूमि आधारभूत संरचना व सामाजिक कार्यों (नॉन प्रोसेसिंग एरिया) के लिए सुरक्षित रखी गई थी, जिसमें पार्क, कर्मचारियों के लिए हाउसिंग प्रोजेक्ट, सड़क आदि सामाजिक कार्य होने थे। सेज की शुरुआत में करीब दो दर्जन बड़ी कंपनियां आई और इनमें से कुछ ने अपने प्रोजेक्ट भी शुरु किए, लेकिन अधिकांश सेज भूमि आज भी खाली सी पड़ी है। मात्र पांच दर्जन इकाईयां पूरे सेज क्षेत्र में संचालित है। महिन्द्रा सेज की स्थापना के समय तत्कालीन भाजपा सरकार और मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के साथ कंपनी के कर्ताधर्ताओं ने भी दावे किए थे कि सेज की स्थापना से प्रदेश के औद्योगिक क्षेत्र को नई पहचान मिलेगी और इससे एक लाख लोगों को रोजगार मिलेगा। एक दशक बाद भी आज यह स्थिति है कि महिन्द्रा सेज का अधिकांश औद्योगिक क्षेत्र खाली पड़ा है। मात्र आईटी क्षेत्र की कुछ कंपनियां और हस्तशिल्प से जुड़ी यूनिटें ही यहां कार्यरत है। चारों तरफ घास और बंजर क्षेत्र नजर आता है। एक लाख लोगों को रोजगार तो दूर यहां मात्र कुछ हजार लोगों को ही रोजगार है। सेज के लिए चौदह हजार करोड़ रुपए का निवेश होने का दावा भी बेमानी निकला। जिससे स्पष्ट है कि महेन्द्रा सेज निवेश आकर्षित करने में विफल रहा। दस साल बाद भी यहां कोई ऐसी बड़ी कंपनियां और निवेशक नहीं आए, जिससे यह लगता हो कि सेज की स्थापना से जयपुर के औद्योगिक विकास को गति मिली और स्थानीय लोगों को रोजगार भी मिला। यहीं नहीं महिन्द्रा सेज डवलपर कंपनी ने सामाजिक कार्यों के लिए आरक्षित एक हजार एकड़ भूमि पर कंपनी ने दस साल के दौरान ना तो अस्पताल और स्कूल बनाई है और ना ही वहां कार्य कर रहे कर्मचारियों के लिए कोई हाउसिंग प्रोजेक्ट, सामुदायिक भवन या मार्केट तैयार किया है।

– कंपनी दस्तावेज बयां कर रहे हैं, नहीं आए निवेशक

mahindra-sez-jaipurआरटीआई एक्टिविशेट एडवोकेट राजेश शर्मा की ओर से महेन्द्रा सेज प्रकरण की निकाली आरटीआई के दस्तावेज के मुताबिक, कंपनी खुद भी मान रही है कि जयपुर महेन्द्रा सेज में निवेशकों की रुचि कम ही रही है। कंपनी की 31 दिसम्बर, 2014 की एक रिपोर्ट के मुताबिक सेज और डीटीए क्षेत्र की करीब दो हजार एकड़ भूमि में से करीब सवा सात सौ एकड़ भूमि सेलेबल पड़ी हुई थी। सेज की 1484 एकड़ भूमि में से 682 एकड़ भूमि बिक्री के लिए थी। इसी तरह डीटीए की 500 एकड़ भूमि में से करीब 68 एकड़ भूमि बिक्री लायक पड़ी है। इतनी बड़ी भूमि खाली होने पर भी करीब डेढ़ साल पहले भाजपा सरकार ने महेन्द्रा सेज कंपनी पर मेहरबानी करते हुए सामाजिक क्षेत्र की आरक्षित एक हजार एकड़ भूमि में से पांच सौ एकड़ भूमि कंपनी के सुपुर्द कर दी थी। हालांकि अब सुप्रीम कोर्ट के नोटिस और जवाब मांगने से महेन्द्रा सेज से प्रभावित किसानों को राहत की उम्मीद बंधी है कि उनकी औने-पौने दामों पर ली गई जमीनें वापस मिल सकेंगी।

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