नई दिल्ली। यूरोपिय संघ (ईयू) से अलग होने को लेकर हुए जनमत संग्रह (ब्रेक्सिट) के मामले में ब्रिटेन के सुप्रीम कोर्ट ने सरकार की अपील खारिज कर दी। कोर्ट ने कहा कि ब्रेक्सिट को लेकर संसद में मतदान होना चाहिए कि क्या सरकार ब्रेक्सिट प्रक्रिया को शुरु कर सकती है या नहीं। कोर्ट के इस फैसले के बाद अब सांसद जब तक इस पर अपनी सहमति की मोहर नहीं लगा देते। तब तक प्रधानमंत्री टेरीजा ईयू के साथ बातचीत शुरू नहीं कर सकती। कोर्ट ने सुनवाई करते हुए कहा कि ब्रेक्सिट के मामले में संसद की राय नहीं लिया जाना लोकतंत्र के खिलाफ होगा। इस निर्णय के अनुसार अब सरकार लिस्बन संधि (अनु. 50) को अपने आत्मनिर्णय के आधार पर लागू नहीं कर सकती है। जबकि अनु. 50 के तहत ईयू से ब्रिटेन के अलग होने की औपचारिक प्रक्रिया अभी शुरू होनी है। अटॉर्नी जनरल जेरेमी राइट ने बताया कि कोर्ट के फैसले के बाद सरकार नया विधेयक जल्द संसद में लाएगी। जिस पर हाउस ऑफ कॉमन्स व हाउस ऑफ लार्डस को इसके पक्ष में मतदान करना होगा। विधेयक को संसद में प्रमुख रुप से प्राथमिकता दी जाएगी। स्कॉटिश नेशनल पार्टी व लेबर पार्टी ने इस पर संशोधन लाने की बात कही। वहीं लेबर पार्टी ने ब्रेक्सिट प्रक्रिया में बाधा नहीं अटकाने की बात भी कही। सुप्रीम कोर्ट का ये फैसला कार्यकारी या विधायी शक्तियों के लिए नहीं है.
कोर्ट ने यह भी साफ कर दिया कि मामले में स्कॉटलैंड, उत्तरी आयरलैंड की संसदों से मुहर लगवाने की ज़रूरत नहीं है। इसके मायने यह रहे कि इन सांसदों को अनुच्छेद 50 पर वीटो का अधिकार नहीं है।

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