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– उपेंद्र शर्मा
jaipur. राजस्थान में सरकारी नौकरी की कोई भी परीक्षा हो उसका आयोजन राज के बजाए राम भरोसे ही रहता है। संभवतः देश का अकेला राज्य है जिसकी लगभग हर भर्ती एक बार तो न्यायालय में जाती ही है। हाल ही राज्य अधीनस्थ कर्मचारी चयन आयोग की परीक्षाओं के पेपर आउट हो गए, उससे पहले चिकित्सा विभाग की भर्तियां रद्द हुईं थोड़ा और पहले आरएएस की परीक्षा-2018 के परिणाम अटक गए और ताजा ताजा हाल ही पुलिस कांस्टेबल की परीक्षा की मेरिट जिले और राज्य स्तर के विवाद में उलझ गई….और लो साब आज 16 लाख से अधिक विद्यार्थी जिस रीट (शिक्षक भर्ती) परीक्षा के लिये तैयारी कर रहे थे वो अब आगे बढ़ गई है। वो पहले तय कार्यक्रम के अनुसार 25 अप्रेल को होनी थी अब 20 जून को होगी अगर सकुशल हो सकी तो….

अब कोई पूछे शिक्षा बोर्ड या सरकार के लोगों से कि भाइयों आपने जब यह तारीख 25 अप्रेल तय की थी तब यह होश नहीं था कि उस दिन महावीर जयंती है…क्या आप होली, दिवाली, ईद या क्रिसमस को परीक्षा रख सकते थे? जो महावीर जयंती को रख दी थी मतलब साफ है कि आप को यह ध्यान ही नहीं था कि उस दिन क्या है ? और अगर ध्यान था तो फ़िर यह घोर लापरवाही है जो आपने बरती…या आपको अभ्यर्थियों को कमजोर आय वर्ग (EWS) के अभ्यर्थियों को लाभ देना है तो यह लाभ किसी भी अगली परीक्षा से भी दिया जा सकता है…

लाखों युवा किराए का कमरा लेकर, कोचिंग क्लासेज की फीस देकर, निजी क्षेत्र की नौकरी से अवैतनिक अवकाश लेकर, विवाह की तिथि टालकर, स्त्रियां अपने बच्चों-ससुराल-पति के पाटों के बीच पिसकर, वैधव्य के दुख चिंता के दौरान और भी ना जाने अभ्यर्थी क्या-क्या कष्ट उठाकर तैयारी कर रहे थे पर आपको क्या ? कभी तारीख, कभी आरक्षण, कभी रोस्टर, कभी मेरिट, कभी सेलेबस, कभी रिजल्ट, कभी उत्तर कुंजी तो कभी यह कभी वो…असल में इन सब भर्तियों में इतनी मूर्खताएं क्यों होती हैं. क्योंकि जिन प्रशासनिक अधिकारियों ने अपने पूरे करियर में कोई भी उपलब्धि हासिल नहीं की होती है, उन्हें रिटायरमेंट के बाद राजनेता भर्ती आयोगों, शिक्षा बोर्ड, मंडलों, निगमों के अध्यक्ष या सदस्य बना देते हैं। बाद में उन्हें एक के बाद एक पेपर आउट होने पर इस्तीफा देना पड़ता है, यहां तक कि जो लोग राजनेताओं के पोलिंग बूथ एजेंट स्तर के आदमी होते हैं वे भी इन आयोगों-बोर्ड-निगम के अध्यक्ष-सदस्य तक नियुक्त हो जाते हैं…जिन प्रोफेसर्स ने जीवन भर विश्वविद्यालयों में कोई क्लास तक नहीं ली हो जो दिन का सारा वक्त सिगरेट के धुएं में उड़ा देते हों या वो प्रोफेसर जिन्हें गलत पढ़ाने के चलते उन्हीं के छात्रों ने क्लास में ही मारा-पीटा हो वो तक अध्यक्ष या सदस्य मनोनीत हो जाते हैं…क्योंकि आप सम्बंधित राजनेताओं के वैचारिक कार्यकर्त्ता हो…यही आपकी मूल योग्यता है…
ऐसे लोग भर्तियों का भुर्ता और अभ्यर्थियों को मुर्गा नहीं तो और क्या बनाएंगे ? फिलहाल रीट परीक्षा के सभी अभ्यर्थियों को शुभकामनाएँ कि “हिम्मत बनाए रखना…”

upendra sharma

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार है)

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