जयपुर। गली-मोहल्लों में स्थित छोटे से छोटे मन्दिर में भी हजार-दो हजार रूपए महीने का चढ़ावा तो आ ही जाता है लेकिन, राजस्थान में देवस्थान विभाग के अधीन कई मन्दिर ऐसे हैं जिनकी गुल्लक में इतना पैसा सालभर में भी चढ़ावे का नहीं आ रहा है। कुछ में तो सालभर में मात्र 200 रूपए भी चढ़ावे का नहीं मिला।
केरल का पद्मनाभ मंदिर, आंध्रप्रदेश का तिरूपति मन्दिर, जम्मू-कश्मीर का वैष्णो देवी माता मन्दिर और मुम्बई का सिद्धि विनायक मन्दिर ऐसे नाम है जहां सालाना चढ़ावा अरबों में आता है। चर्चित पद्मनाभ मंदिर और तिरूपति बालाजी की सालाना आमदनी की बात करें तो यह 650 करोड़ को पार चुकी है। वैष्णों देवी में ५00 करोड़ रूपए से अधिक का चढ़ावा मिलता है। राजस्थान के मन्दिर भी कमाई के मामले में पीछे नहीं है। सांवलिया सेठ का मन्दिर, खाटू श्यामजी मन्दिर, सालासर बालाजी का मन्दिर, जीण माता का मन्दिर, मेहन्दीपुर बालाजी का मन्दिर, मोतीडूंगरी गणेशजी, गोविन्ददेवजी, डिग्गी कल्याणजी सहित कई मन्दिर ऐसे हैं जहां साल में करोड़ों रूपए का चढ़ावा आता है। भगवान के दर्शन के लिए भक्तों की लाइन लगती है। खासकर जब सालाना मेला आयोजित होता है तो इन मन्दिरों में लाखों की संख्या में भक्त पहुंचते है। तब यहां पैर रखने तक की जगह नहीं होती। दूसरी तरफ राजस्थान में देवस्थान के अधीन कई मन्दिर ऐसे है जहां साल भर में चढ़ावे की राशि दो या तीन अंकों तक ही सीमित है। देवस्थान विभाग के अधीन प्रत्यक्ष प्रभार वाले 390 तथा 204 आत्म निर्भर मन्दिर है जबकि 342 सुपुर्दगी मन्दिर है। इनमें से करीब 100 मन्दिरों की आमदनी संबंधी एक रिपोर्ट हाल में सार्वजनिक हुई है। इसमें वर्ष 2013-14 और वर्ष 2014-15 में मिले चढ़ावे का ब्यौरा दिया गया है। चौंकाने वाली बात यह है कि वर्ष 2014-15 में भरतपुर के मन्दिर श्री गंगा जी और जैसलमेर के मन्दिर श्री गिरधारीजी में चढ़ावे से होने वाली आमदनी शून्य बताई गई है। जबकि ये दोनों मन्दिर एतिहासिक है।
जयपुर में मन्दिर श्री बलदेव जी परसरामद्वारा की आय मात्र 174, आमेर के रामेश्वर मन्दिर की आय 184, मन्दिर श्री रामेश्वर जी पुराना घाट की आय 50, लक्ष्मीनारायणजी, जयनिवास उद्यान की आय 120, महताब बिहारी जी की आय 107, जानकी बल्लभजी की आय 126, विजय गोविन्दजी मन्दिर की आय 123, रसिक बिहारी जी आय 136, मन्दिर श्री राधा मनोहर जी की आय 198, मन्दिर श्री रघुनाथजी की आय 118, मन्दिर श्री फतेह कुंज बिहारी जी की आय 120 रूपए है। इसी तरह जोधपुर के मन्दिर श्री भुवनेश्वर जी की आय 199, मन्दिर श्री अटल बिहारी की 58, भरतपुर के मन्दिर श्री लक्ष्मणजी की 101, बून्दी के मन्दिर श्री हनुमान धर्मशाला, कोटा के मन्दिर श्री अनन्तरामजी-प्यारेरामजी की आय 135, पाटन के मन्दिर श्री विश्वन्त माता जी की 135 तथा झालरापाटन स्थित माताजी के मन्दिर में चढ़ावे के रूप में मात्र 137 रूपए मिले थें। कमोबेश यही हाल वित्तीय वर्ष 2013-14 में रही। वित्तीय वर्ष 2015-16 की रिपोर्ट अभी तैयार नहीं है।
करोड़पति और लखपति भगवान भी है
ऐसा नहीं है कि देवस्थान के अधीन सभी मन्दिरों की माली हालात खराब है। कुछ प्रसिद्ध मन्दिर ऐसे भी जहां सालाना चढ़ावा करोड़ों में भी है। इस रिपोर्ट में सबसे ज्यादा चढ़ावा प्राप्त करने वाला मन्दिर गोगामेढ़ी मन्दिर और ऋषभदेव मन्दिर हैं। गोगामेढ़ी में एक करोड़ 56 लाख 09 हजार 430 रूपए नकद तथा करीब आठ किलो चांदी चढ़ावे में मिली। जबकि ऋषभदेवजी मन्दिर का चढ़ावा एक करोड़ 03 लाख 37 हजार 774 रूपए नकद और नौ किलोग्राम चांदी का रहा। जोधपुर के कुंज बिहारी मन्दिर में 97199 एवं गंगाश्याम जी मन्दिर में 83753, पाली के सोमनाथ मन्दिर में 43199, उदयपुर की नीमच माता मन्दिर में 129646, जगन्नाथ मन्दिर में 505232, भीलवाड़ा के सिंगाली श्याम मन्दिर में 2649135, भरतपुर के बिहारी मन्दिर में 145668 का चढ़ावा आया। जबकि कैलादेवी मंदिर का चढ़ावा 1847439 रूपए है। यह स्वतंत्र प्रभार श्रेणी का मन्दिर है। जयपुर के बृजनिधि जी मन्दिर में 16721, आनन्द कृष्ण बिहारी जी मन्दिर में 58129 रूपए का चढ़ावा आया है। यहां खास बात यह है कि ये दोनों मन्दिर आमने-सामने है और इनकी दूरी 200 मीटर भी नहीं है। इन मन्दिरों में चढ़ावा अधिक आने वजय यहां सामाजिक कार्यक्रमों के लिए मंजूरी दिया जाना है। जयपुर के राधा गोपालजी मन्दिर में 17922 और गंगा माता मन्दिर में 20241 रूपए का चढ़ावा आया है। आत्म निर्भर श्रेणी के मन्दिर श्री माताजी सांवलियान में चढ़ावे में 465147 रूपए प्राप्त हुए।
बढ़ सकती है भक्तों की आस्था
देवस्थान विभाग के अधीन ये मन्दिर प्राचीन है और इनका अपना एक इतिहास है। कुछ मन्दिर वास्तुशिल्प के अनूठे उदाहरण है। पर्यटन विभाग और देवस्थान विभाग दोनों मिलकर धार्मिक पर्यटन को बढ़ावा देकर इन मन्दिरों में भक्तों की संख्या को बढ़ा सकते है। अधिकांश मन्दिरों को विभाग ने अपने हाल पर छोड़ रखा है। त्योहार विशेष पर आयोजन करके इन मन्दिरों के प्रति लोगों का जुड़ाव बढ़ाया जा सकता है। अभी विभाग की ओर से त्योहार विशेष पर कुछ चुनिन्दा मन्दिरों में भी आयोजन कराया जाता है। यह आयोजन भी केवल खानापूर्ति बनकर रह जाता है।
उजागर नहीं करते चढ़ावे की आमदनी
देश के ज्यादातर मन्दिर प्रबंधन एवं ट्रस्ट चढ़ावे से होने वाली आमदनी को उजागर ही नहीं होने देते। कई आमदनी दिखाते भी है तो ज्यादातर के रिकॉर्ड को विश्वसनीय नहीं माना जा सकता। कागजों में हेरफेर कर कम से कम आमदनी दिखाने का प्रयास आमतौर पर किया जाता है। अधिक आमदनी दिखाने से सरकारी जांच आदि की समस्या आ सकती है।

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