jaipur. समाज में आत्महत्याओं की घटनाएं तेजी से बढ़ रही है। पहले व्यक्ति स्वयं की जान लेता था, लेकिन कुछ सालों से आवेश व कलह से तंग आकर परिवार के सभी सदस्य सुसाइड कर रहे हैं। मंगलवार को जयपुर के पास सिंगोदखुर्द गांव में एक विवाहिता ने अपनी दो मासूम बच्चियों के साथ सुसाइड कर लिया। सुसाइड की वजह पति के शराब का आदी होने और कर्जा होने की बात सामने आ रही है। इसी तरह कोटा में भी एक मां ने पांच बेटियों के साथ कुऐं में कूद कर जान दे दी। कुछ साल पहले पति-पत्नी ने कर्जे के चलते पहले अपने तीन बच्चों की हत्या की। फिर खुद भी फंदे से झूल गए।

सूदखोरों से तंग आकर कई परिवार अपनी जिंदगी खत्म कर चुके हैं। इस तरह के घटनाएं बहुत होने लगी है। उक्त घटनाओं के पीछे पारिवारिक कलह, परिवार पर कर्जा, पति-पत्नी में विवाद, लव अफेयर, नशेडी पति की प्रताडऩा, सूदखोरों के चंगुल में फंसने जैसे कारण सामने आए हैं। अधिकांश सुसाइड के केस एकल परिवारों में सामने आए हैं। संयुक्त परिवारों के बिखराव होने के कारण यह सामाजिक समस्या तेजी से बढ़ी। संयुक्त परिवार में बड़े-बुजुर्ग परिवार के सदस्यों पर नजर रखते थे। उन्हें नैतिक संस्कार देते थे। अगर कोई सदस्य बेकार है या व्यवसाय नहीं चल रहा है तो पूरा परिवार उसे हर तरह का आर्थिक संबल प्रदान करता था। कोई सदस्य बुरी संगत में दिखता तो उसके साथ समझाइश करके सही राह पर लगाने का कार्य घर के बड़े बुजुर्ग किया करते थे। यह सब संयुक्त परिवारों में होता रहा, लेकिन जब से संयुक्त परिवारों में बिखराव हुआ और एकल परिवारों में तब्दील हुआ, तब से सुसाइड की सामाजिक बुराईयां तेजी से होने लगी है। एकल परिवार में पति-पत्नी के बीच अलगाव, लड़ाई झगड़े होने पर समझाइश करने वाला कोई वरिष्ठ सदस्य व बुजुर्ग नहीं होता। जिसकी परिणति यह होती है कि आए दिन झगड़ों व प्रताडऩा से तंग आकर महिला बच्चों के साथ घर छोड़ देती है। कुछ प्रताडऩा से तंग आकर आवेश में खुद बच्चों के संग अपनी जिन्दगी खत्म कर लेती है।

ऐसे ही नौकरी छूटने और कर्जा होने पर पूरा परिवार ही सुसाइड कर लेता है। सूदखोरी जैसे मामलों में शासन की कमी है, जो सूदखोरों पर कानून की लगाम लगाने में विफल साबित हो रहा है। शिकायत मिलने के बाद भी सूदखोरों पर एक्शन नहीं होता है, जिसके चलते बहुत से परिवारों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा। सुसाइड के बढ़ते केसों को देखते हुए पारिवारिक सदस्यों और समाज को भी चाहिए कि ऐसे परिवार जिनमें में अलगाव, झगड़े और पारिवारिक कलह है, उन परिवारों को समझाए। मदद करें। कई बार मनो-वैज्ञानिक तरीके से की गई समझाइश का काफी असर होता है। सुलझ बनती है। व्यक्ति गलत कदम उठाने के बारे में नहीं सोचता। सरकार और शासन को भी चाहिए कि सुसाइड केसों पर कैसे रोकथाम लगे, इसके लिए जनजागरण और जागरुकता संबंधी कार्यक्रम चलाए जाए। प्रभावित परिवारों की काउंसलिंग की जाए। सूदखोरी जैसे संगठित माफियों पर सरकार नकेल कसे।

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