जयपुर। शरीर में इंसुलिन की मात्रा को तेजी से बढाने वाले कैंसर ”इंसुलिनोमा टयूमर“ की पहचान राज्य में पहली बार हुई है। प्रदेष के भगवान महावीर कैंसर हॉस्पिटल एंड रिसर्च सेंटर के न्यूक्लियर मेडिसन विभाग में इस रेयर टयूमर को डायग्नोस किया गया है। अग्नाशय के अंदर (1.3 से.मी.) इंसुलिनोमा टयूमर की पहचान गैलियम-68 डॉटानोक पैट सिटी स्केन के जरिए की गई है। इस स्केन को मोलिक्यूलर फंक्शनल इमेजिंग टेस्ट कहा जाता है।

बीएमसीएचआरसी के न्यूक्लियर मेडिसीन के विभागाध्यक्ष डॉ जे के भगत और सहायक चिकित्सक डॉ हेमंत राठौर की टीम ने इस टयूमर की पहचान की है। डॉ हेमंत राठौर ने बताया कि इंसुलिनोमा टयूमर एक तरह का न्युरोऐण्डोक्राईन टयूमर होता है जिसमे अत्याधिक मात्रा मे सोमेटोस्टेटिन व गलायकोप्रोटिन 1 नामक रिसेपटार होता है, जिसे गैलियम-68 डॉटानोक पैट सिटी स्केन के द्वारा खोजा जा सकता है। डॉ जे के भगत ने बताया कि इंसुलिनोमा टयूमर का साइज बहुत छोटा होता है। इसकी वजह से इसकी पहचान साधारण सिटी स्केन या एमआरआई से करना संभव नही होता है। इसके लिए एडवांस डायग्नोसिस मषीन की जरूरत होती है। चिकित्सालय में मौजूद प्रदेष की पहली और एक मात्र गैलियम-68 मषीन के जरिए इस रोग की पहचान की गई है।

चिकित्सालय के अधिषासी निदेषक मेजर जनरल डॉ एस सी पारीक (सेवानिवृत) ने बताया कि राज्य के लोगों को किसी भी तरह के कैंसर की जांच और उपचार के लिए प्रदेष के बाहर ना जाना पडा इस उदेष्य से चिकित्सालय समय-समय हर आधुनिक तकनिक को चिकित्सालय से जोड रहा है।

इंसुलिनोमा टयूमर के लक्षण और उपचार
डॉ राठौर ने बताया कि इंसुलिनोमा टयूमर के रोगी के शरीर में इंसुलिन की मात्रा तेजी से बढती जाती है, जिसकी वजह से ग्लूकोज का स्तर घटता चला जाता है। आमतौर पर एक व्यक्ति में ग्लूकोज की मात्रा (90 से 110 मिलिग्राम/डी एल) होती है, जो इस रोग में बार-बार घटकर (50) से भी निचे तक पहुंच जाती है। इससे रोगी को कमजोरी आती है, पसीना आकर रोगी बेसुध हो जाता है। कई रोगियों में ग्लूकोज का लेवल कम होने पर मानसिक स्वास्थ्य पर भी नकारात्मक प्रभाव पडता है। उपचार के तहत रोगी का ऑपरेषन कर इस टयूमर को निकाला जाता है।

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