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जयपुर। छबड़ा विधायक प्रताप सिंह सिंघवी ने राज्य सरकार की लहसुन खरीद नीति पर सवाल खड़े किए हैं। उन्होंने कहा कि बाजार हस्तक्षेप योजना के अंतर्गत लहसुन खरीदने को जो नियम बनाए हैं वे किसानों के जख्मों पर नमक छिड़कने के समान हैं। सिंघवी ने मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे को पत्र लिखकर नियमों को व्यवहारिक बनाने की मांग की है। इस साल प्रदेश में लहसुन की बंपर पैदावार हुई है, लेकिन किसानों को अपनी उपज की पर्याप्त कीमत नहीं मिल रही। पिछली बार जहां लहसुन 45-50 रुपये किलो बिका था, वहीं इस बार यह 5-8 रुपये किलो की बिक रहा है।

हालांकि सरकार ने बाजार हस्तक्षेप योजना के अंतर्गत 32.57 रुपये किलो के भाव से लहसुन खरीदने की घोषणा की थी, लेकिन इसके नियम इतने पेचीदा बना दिए कि ज्यादातर किसान इसके दायरे से बाहर हो गए हैं। सिंघवी ने बताया कि छीपाबड़ौद में प्रदेश की एकमात्र लहसुन मंडी है। यहां सरकारी खरीद केंद्र शुरू हुए एक सप्ताह से ज्यादा का समय हो गया है, लेकिन अभी तक महज दो किसान ही लहसुन बेच पाए हैं। उन्होंने बताया कि सरकारी खरीद केंद्र पर लहसुन बेचने आ रहे ऐसे किसानों का ई-मित्र पर पंजीयन नहीं किया जा रहा जो इस सीजन में न्यूनतम समर्थन मूल्य पर कोई दूसरी फसल बेच चुके हैं। इससे बड़ी संख्या में किसान सरकारी केंद्र पर अपनी उपज बेचने से वंचित रह रहे हैं।

विधायक ने कहा कि जिन किसानों का ई-मित्र पर पंजीयन हो रहा है वे खरीद की अव्यवहारिक शर्तों के कारण लहसुन नहीं बेच पा रहे। उन्होंने बताया कि सरकार ने इस बार खरीद के लिए लहसुन की गांठ का आकार न्यूनतम 25 एमएम होने की शर्त रखी है जबकि पिछली साल यह सीमा 20 एमएम थी। सिंघवी ने कहा कि आमतौर पर लहसुन की गांठ का आकार 15 एमएम होता है। इस वजह से ज्यादातर किसानों के सैंपल पास नहीं हो रहे। सिंघवी ने मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे को पत्र लिखकर लहसुन उत्पादक किसानों को ई-मित्र पर पंजीयन शुरू करने, न्यूनतम आकार 25 एमएम से 15 एमएम करने व खरीद की सीमा को 15 दिन बढ़ाने की मांग की है। गौरतलब है कि सरकारी केंद्रों पर लहसुन खरीद की अंतिम तिथि 12 मई है।

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