जयपुर। जयपुर राजपरिवार की राजमाता और महारानी गायत्री देवी का आज जन्मदिवस है। हालांकि वे हमारे बीच में नहीं है, लेकिन उनकी यादें और स्मृति आज भी जयपुर, राजस्थान की सीमाओं से बाहर देश-दुनिया में लोगों के दिलो-जहां में है। वे राजपरिवार में पली-बढ़ी होने के बावजूद आम इंसानों की तरह थी। इसलिए वे नाम केवल राजनीति में सफल रही है, बल्कि राजस्थान की जनता का विश्वास उन्हें जब तक वह जीवित रही तब तक मिलता रहा। नीडर इतनी थी कि आपातकाल में जेल जाने के बाद भी वे डरी और हारी नहीं, बल्कि ओर ज्यादा ताकत व मजबूती के सामने विरोधियों के सामने आई। जयपुर की विरासत को बचाने और चार चांद लगाने में उनकी खासी बड़ी भूमिका रही। आजादी के बाद जब सरकारों ने ऐतिहासिक इमारतों व जगहों को बर्बाद करने लगे तो उन्होंने ना केवल विरोध जताया, बल्कि आंदोलन भी किया। जलमहल स्मारक को सरकारी गोदाम और झील भूमि को लीज पर देने की कोशिश की गई तो उन्होंने ना केवल आमरण अनशन किया, बल्कि सरकार के इस भूमि को लीज पर देने के प्रस्ताव को रद्द करना पड़ा। जयपुर की दुर्दशा और ऐतिहासिकता को खत्म होते देख वह दुखी मन से विरोध भी जताती थी। जब उनका निधन हुआ तो पूरा जयपुर उनकी अंतिम यात्रा में उमड़ पड़ा। जनता का प्यार और विश्वास ही था कि लाखों लोग उनकी यात्रा में शरीक हुए। हालांकि वह राजपूताना से नहीं थी। वह पश्चिम बंगाल के कूचविहार राज परिवार से थी। उनकी शिक्षा दीक्षा लंदन व दूसरे विदेशी शहरों में हुई। राजपरिवार में होने के बावजूद वह खुले विचारों की थी। हमेशा महिलाओं को आगे बढ़ाने की बात करती थी। उन्होंने जयपुर में बालिका शिक्षा के लिए स्कूलें भी खोली। उनका विवाह जयपुर के महाराजा मानसिंह द्वितीय के साथ हुआ। उस समय की सबसे मशहूर पत्रिका वॉग ने उन्हें दुनिया की सबसे खूवसूरत महिला बताया था। 1961 में स्वत्रंत पार्टी से पहली बार सांसद बनी जयपुर से। 1967 व 1971 के लोकसभा में चुनाव में भारी मतों से जीती। आपातकाल के दौरान लम्बे समय तक तिहाड़ जेल में बंद रही। हालांकि जेल यात्रा के बाद भी वह हिम्मत नहीं हारी। बल्कि दुगुने जोश से विरोधियों के सामने आ डटी। 29 जुलाई 2009 को राजमाता गायत्री देवी का निधन हो गया। लेकिन आज भी वे अपने विचारों और सेवाभावी कार्यों की बदौलत जयपुर व राजस्थान के लोगों में जीवंत है।