– राकेश कुमार शर्मा
जयपुर। जयपुर के विशेष आर्थिक क्षेत्र सेज (महिन्द्रा वल्र्ड सिटी जयपुर) को कथित फायदा पहुंचाने के लिए खूब रेवडिय़ां बांटी गई है। स्थापना के एक दशक बाद भी महिन्द्रा वल्र्ड सिटी जयपुर सेज ना तो निवेश के हिसाब से विकसित हो पाया और ना ही कंपनी-सरकार ने रोजगार, निवेश व अन्य दावे किए थे, वो पूरे हो पाए। आज की तारीख में भी महिन्द्रा सेज में गिनी-चुनी कंपनियों के ऑफिस दिखाई देते हैं। कंपनी-सरकार के दावों में फेल होने के बाद भी महिन्द्रा सेज की डवलपर कंपनी महिन्द्रा जेस्को डवलपर्स लिमिटेड को रेवडिय़ां बांटने में भाजपा सरकार ने कोई कसर नहीं छोड़ी। सेज के नियम-कायदों और एमओयू की शर्तों की भी अनदेखी कर दी गई। करीब पौने दो साल पहले भाजपा सरकार ने कंपनी के प्रस्ताव को स्वीकार करते हुए सेज नियमों के तहत सामाजिक कार्यों (नॉन प्रोसेसिंग एरिया) के लिए अधिसूचित एक हजार एकड़ भूमि में से करीब पांच सौ एकड़ भूमि को कंपनी को सौंप दी। भाजपा सरकार ने यह कहते हुए कंपनी को बेशकीमती पांच सौ एकड़ भूमि दी गई कि सेज के आस-पास जेडीए ने आवासीय व वाणिज्यिक क्षेत्र विकसित कर दिया है। नॉन प्रोसेसिंग एरिया कम करने से इस परियोजना पर कोई विपरीत प्रभाव नहीं पड़ेगा। कंपनी ने प्रस्ताव में यह भी कहा कि राज्य में औद्योगिक निवेश को बढ़ावा देने, नई निर्यातोन्मुखी इकाईयां स्थापित करने और रोजगार उपलब्ध कराने के लिए घरेलू औद्योगिक क्षेत्र में जमीन की आवश्यकता है। दिलचस्प बात यह है कि कंपनी के प्रस्ताव को उधोग विभाग ने ज्यों का त्यों स्वीकार करते हुए राज्य सरकार से भी इसकी मंजूरी ले ली। सरकार और विभाग ने सेज नियमों और एमओयू शर्तों के संबंधों में राज्य के विधि विभाग और वित्त विभाग से भी राय लेना उचित नहीं समझा और ना ही रीको बोर्ड में इसे रखा गया। सामाजिक कार्यों के लिए आरक्षित पांच सौ एकड़ भूमि को कंपनी को दे दिया। जमीन देते वक्त यह भी नहीं देखा कि कंपनी को जो जमीन दी गई थी, उसमें कितने निवेशक आए हैं और वहां कितनी इकाईयां कार्य कर रही है। महिन्द्रा सेज की स्थिति ना सरकार से छिपी थी और ना ही उधोग विभाग व रीको से, लेकिन फिर भी कंपनी को कथित फायदा पहुंचाने के लिए भाजपा सरकार ने पांच सौ एकड़ भूमि की रेवडिय़ां कंपनी को बांट दी। वो भी तब जब सेज क्षेत्र तीस फीसदी से भी अधिक खाली पड़ा था और जिन निवेशकों को जमीनें दी गई थी, उनमें से कईयों ने अपनी इकाईयां तक शुरु नहीं की थी। फिर भी जमीनों की बंदरबांट कर दी गई। बताया जाता है कि पांच सौ एकड़ भूमि की कीमत चार से पांच हजार करोड़ रुपए बताई जा रही है। यह भी सामने आया है कि डेढ़ दशक पहले पांच सौ एकड़ भूमि मिलने और रिसर्जेंट राजस्थान होने के बाद भी महिन्द्रा सेज में खास निवेशक नहीं आए हैं और आज भी बड़ी भूमि खाली ही पड़ी है। ऐसे में हाल ही सुप्रीम कोर्ट द्वारा सेज क्षेत्रों में खाली पड़ी भूमियों के बारे में जवाब मांगने से जयपुर महिन्द्रा सेज के प्रभावित किसानों को भी फायदा मिलने की उम्मीद बंधी है।
– इस तरह खेला गया खेल
एक दशक पहले तत्कालीन भाजपा सरकार के राज में जयपुर अजमेर राष्ट्रीय राजमार्ग पर विशेष आर्थिक जोन (सेज) के लिए करीब तीन हजार एकड़ भूमि प्रावधान किया गया था। तब भी मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे थी। इसके लिए रीको व महिन्द्रा लाइफ स्पेस डवलपर्स के बीच 25 जून, 06 को एक समझौता हुआ था। सेज में करीब एक हजार एकड भूमि आधारभूत संरचना व सामाजिक कार्यों (नॉन प्रोसेसिंग एरिया) के लिए सुरक्षित रखी गई थी, जिसमें पार्क, कर्मचारियों के लिए हाउसिंग प्रोजेक्ट, सड़क आदि सामाजिक कार्य होने थे, लेकिन सेज की स्थापना से अब तक न तो डवलपर कंपनी और ना ही उद्योग विभाग ने नॉन प्रोसेसिंग एरिया को डवलप करने की सोची ही नहीं। प्रदेश में जैसे ही वसुंधरा राजे सरकार आई, कंपनी ने नॉन प्रोसेसिंग एरिया की सुरक्षित जमीन को लेने के लिए सरकार को एक प्रस्ताव भेज दिया। सरकार और सरकारी नुमाइंदों ने भी कंपनी प्रस्ताव पर ना तो जांच करवाई और ना ही सेज क्षेत्र में आए निवेश व निवेशक संबंधी कार्यों की जहमत उठाई। कंपनी के प्रस्ताव को स्वीकार करते हुए पांच सौ एकड़ भूमि कंपनी को सुपुर्द कर दी। सेज नियमों के तहत नॉन प्रोसेसिंग एरिया की रिजर्व भूमि को कम नहीं किया जा सकता है और ना ही लैण्डयूज चेंज कर सकते हैं।
– एक लाख लोगों के रोजगार का दावा किया था
महिन्द्रा सेज की स्थापना के समय तत्कालीन भाजपा सरकार में मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के साथ कंपनी के कर्ताधर्ताओं ने भी बड़े-बड़े दावे किए थे कि सेज की स्थापना से प्रदेश के औद्योगिक क्षेत्र को नई पहचान मिलेगी और इससे एक लाख लोगों को रोजगार मिलेगा। आज यह स्थिति है कि महिन्द्रा सेज का अधिकांश क्षेत्र खाली पड़ा है। मात्र आईटी क्षेत्र की कुछ कंपनियां और हस्तशिल्प से जुड़ी यूनिटें ही यहां कार्यरत है। चारों तरफ घास और बंजर क्षेत्र नजर आता है। एक लाख को रोजगार के बजाय मात्र आठ-दस हजार लोग ही रोजगार पा रहे हैं। सेज के लिए चौदह हजार करोड़ रुपए का निवेश होने का दावा भी बेमानी निकला। यहां मात्र ढाई हजार करोड रुपए का निवेश ही अभी तक आ पाया है। स्पष्ट है कि महेन्द्रा सेज निवेश आकर्षित करने में विफल रहा।
– कांग्रेस ने की थी सीबीआई जांच की मांग
राज्य केबिनेट से पांच सौ एकड़ भूमि कंपनी को देने के प्रस्ताव को मंजूरी मिलने के बाद विपक्षी दल कांग्रेस पार्टी के प्रदेशाध्यक्ष सचिन पायलट और पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने इसे बड़ा घोटाला बताते हुए इस मामले की जांच सीबीआई से करवाने की मांग की थी। विधानसभा में भी इस मुद्दे पर काफी हंगामा हुआ था। कांग्रेस नेता रमेश मीणा समेत अन्य विधायकों ने भी इस मुद्दे को विधानसभा में उठाया था। यह पहला मामला था, जिसमें वसुंधरा राजे सरकार को विपक्ष ने ना केवल घेरा था, बल्कि बड़े घोटाले के आरोप भी लगाए गए।
नोट: चित्र में महिन्द्रा वल्र्ड सिटी सेज कंपनी को पांच सौ एकड़ भूमि देने के प्रस्ताव को मंजूरी संबंधित दस्तावेज।