Gurdaspur Lok Sabha by-election: War of prestige in Congress and BJP-Akali coalition

गुरदासपुर लोकसभा उपचुनाव कांग्रेस और भाजपा-अकाली दल के लिए प्रतिष्ठा की जंग होगा। चुनाव  में मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह, कांग्रेस के प्रदेश प्रधान सुनील जाखड़, भाजपा के प्रदेश प्रधान विजय सांपला और अकाली दल के प्रधान सुखबीर सिंह बादल की साख दांव पर होगी। विधानसभा चुनाव में ही मात खा चुकी आम आदमी पार्टी के पास इस चुनाव में खोने के लिए बहुत कुछ नहीं है। कैप्टन सरकार की अग्नि परीक्षा 11 मार्च को कांग्रेस ने पंजाब के इतिहास में नया अध्याय लिखा था। दस साल बाद कांग्रेस फिर पंजाब में सत्तारूढ़ हुई। पार्टी ने 77 विधानसभा क्षेत्रों में जीत दर्ज की। अब गुरदासपुर उप चुनाव सीधे रूप से कांग्रेस सरकार के लिए अग्निपरीक्षा साबित होगा। सात माह के कार्यकाल के दौरान कैप्टन सरकार ने जो काम किए हैं उसका आम जनता पर क्या असर पड़ा, जनता ने उनकी सरकार पर कितना विश्वास किया यह अक्टूबर में देखने को मिलेगा जब लोकसभा उपचुनाव के नतीजे आएंगे।

गुरदासपुर जिले को दो मंत्री तृप्त राजिंदर सिंह व अरुणा चौधरी दिए गए हैं। क्षेत्र की नौ में से सात विधानसभा सीटों पर कांग्रेस का कब्जा है। सात माह के अंतर पर होने वाले चुनाव के परिणाम सीधे रूप से कैप्टन की साख के साथ जुड़ेंगे। कांग्रेस जीतती है तो सरकार के समक्ष यह कहने को होगा कि लोगों ने केवल क्षणिक रूप से कांग्रेस पर भरोसा नहीं जताया, बल्कि उनका कैप्टन अमरिंदर सिंह के ऊपर विश्वास है। अगर परिणाम नकारात्मक आए तो विपक्ष के पास सरकार को घेरने का मौका मिल जाएगा। अकाली-भाजपा के लिए साख का सवाल  साल की शुरुआत में ही पंजाब के मतदाताओं ने अकाली दल और भाजपा को ऐसा झटका दिया जो कम से कम अकाली दल तो कभी भी नहीं भूल पाएगा। पंजाब के इतिहास में पहला ऐसा मौका था जब अकाली दल को विपक्ष का भी दर्जा नहीं मिला। अकाली दल के मात्र 15 सदस्य ही विधानसभा में पहुंचे। भाजपा भी 12 से 3 सीटों पर सिमट गई। गठबंधन के समक्ष गुरदासपुर उप चुनाव साख का सवाल है।  खास तौर से भाजपा के प्रदेश प्रधान विजय सांपला और अकाली दल के प्रधान सुखबीर बादल के लिए क्योंकि विधानसभा चुनाव इन्हीं दोनों नेताओं की अगुवाई में लड़ा गया और उप चुनाव भी इन्हीं दोनों की अगुवाई में लड़ा जाना है। विधानसभा में मिली हार के बाद तो ऐसा लगा था कि विजय सांपला की प्रधानगी भी जा रही है।

ऐसे में अगर भाजपा गुरदासपुर उपचुनाव जीतती है तो उसके पास कहने को होगा कि महज सात माह में कांग्रेस का तिलस्म तोड़ दिया। अगर ऐसा नहीं हुआ तो दोनों ही पार्टियों की मुश्किलें बढ़ेंगी। आप के लिए भी कम महत्वपूर्ण नहीं  आम आदमी पार्टी एक बार फिर गुरदासपुर उपचुनाव में अपनी किस्मत पर दांव खेलने जा रही है। 2014 में हुए लोकसभा चुनाव और 2017 में हुए विधान सभा चुनाव में आप गुरदासपुर जिले में अपनी कोई भी छाप नहीं छोड़ सकी। विधानसभा चुनाव में पूरे पंजाब में 100 सीटें जीतने का दावा करने वाली आप महज 20 सीटों पर सिमट कर रह गई। उपचुनाव में आप ने ताल ठोक कर अपने वजूद को बचाने की कोशिश की है। विधान सभा चुनाव परिणाम आने के बाद से आप का ग्राफ पंजाब में लगातार गिरता ही जा रहा है। ऐसे में अगर आप गुरदासपुर चुनाव में अपनी छाप नहीं छोड़ सकी तो इससे पार्टी की भविष्य में मुश्किलें बढ़ सकती हैं।

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