जयपुर। आज पृथ्वी दिवस है। यूएनओ से लेकर तमाम सरकारी और निजी संस्थाएं-संगठन इस दिन को खास तरीके से मना रहे हैं। पृथ्वी को हरा-भरा बनाए रखने के लिए प्रतीक के तौर पर पौधे रोपे जा रहे हैं तो स्कूली बच्चों को चित्रकला सहित अनेक प्रतियोगिताओं के माध्यम से जिम्मेदार बनाया जा रहा है। अमूमन देखा जाए तो यह क्रम हर साल पृथ्वी दिवस पर देखने को मिलता है। जहां लोग पृथ्वी को हरा भरा बनाए रखने के लिए संकल्प लेते हैं। लेकिन अगले ही दिन वे अपना पुराना ढर्रा पकड़ लेते हैं। यही वजह है कि पृथ्वी के संरक्षण को लेकर जिस तरह के प्रयास किए जाने चाहिए थे। समूचे विश्व जगत में उस तरह की सजगता देखने को नहीं मिली। एक अध्ययन के मुताबिक आज भी हर दिन 6 अरब किलोग्राम कूड़ा समंदर में फैंक दिया जाता है। जिसका नकारात्मक असर समुद्र में पाई जाने वाली जीवों की विभिन्न प्रजातियों पर देखने को मिलता है। जो अब शनै: शनै: लुप्त होने के कगार है। कई प्रजातियां तो अब आईयूसीएन की रेड डेटा बुक में शामिल हो गई है। जो या तो लुप्त हो चुकी है या फिर लुप्त होने के कगार पर है। जिनमें जीवों से लेकर पादप तक शामिल है। अध्ययन कहता है कि समुद्र में कचरा फैंकने का यही क्रम बरकरार रहा तो वर्ष 2050 तक समुद्र में मछलियों से ज्यादा तो प्लास्टिक हो जाएंगा। जबकि समुद्री परिवहन भी अब इन जीवों के लिए नुकसान दायक ही साबित हो रहा है। समुद्र में 10 लाख टन तेल की शिपिंग के दौरान एक टन तेल तो समंदर में ही बह जाता है। इसे रोकने के लिए किसी भी देश ने अभी तक प्रभावी प्रयास नहीं किए गए हैं। आज हर 2 सेकंड में एक फुटबॉल के मैदान जितना जंगल काट लिया जाता है। विश्व में एक व्यक्ति के लिए 422 पेड़ बचे हैं, जबकि भारत के संदर्भ में यह स्थिति एक व्यक्ति पर केवल 28 पेड़ जितनी ही बची है। प्रदूषण के कारण पर्यावरण नुकसान को लेकर जहां विश्व समुदाय में हाहाकार मच रहा है। वहीं भारत को प्रदूषण के कारण हर साल करीब 2 लाख करोड़ का नुकसान झेलना पड़ता है। प्रदूषण की मार न केवल वायुमंडल में देखने को मिल रही है। वरन जल प्रदूषण भी एक गंभीर चुनौती बनकर उभर रहा है। लोगों को स्वच्छ पेयजल उपलब्ध कराने को लेकर सरकार दावे कर रही है। जबकि अध्ययन के अनुसार भारत में ही हर 8वें सेकंड में एक बच्चा गंदे पानी के कारण मौत का शिकार हो जाता है।

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